शुक्रवार, 20 दिसंबर 2019

पांव में पीर उठती रही

पाँव में पीर उठती रही पर उंगलियों में दवा दी गयी,
आग जब भी लगी मेरे घर में खिड़कियों से हवा दी गयी

वक़्त नाज़ुक है हालात नाज़ुक,
उनसे मत आसरा कीजिएगा,
हाथ में जो उठाए हैं पत्थर,
उनसे क्या मशवरा कीजिएगा?

मेरी आवाज़ थी बस मोहब्बत सिसकियों में दबा दी गयी
आग जब जब ...............................................।

हो रहे लोग अपने पराए,
फ़ूल मधुमास में मर रहे हैं।
जो है करना नही कर रहे क्यों
जो न करना है वह कर रहे हैं।

आग झुलसी किताबों से लाकर बस्तियों में लगा दी गयी।
आग जब जब ...............................................।

तुम भी हिन्दू मुसलमान हो क्या,
पढ़ न पाए जो दिल की कहानी,
एक जम जम की ख़ातिर लड़ा तो 
दूसरा लड़ गया कहके पानी।

जल तो जल है मेरी बात लेकिन चिट्ठियों में छुपा दी गयी ।
आग जब जब ...........................................।

प्रियांशु गजेन्द्र

शुक्रवार, 13 दिसंबर 2019

किस कहानी में खोए हुए थेके

किसका किरदार हम पढ़ रहे थे,
किस कहानी में खोए थे ?
नैन इतने भी मासूम थे क्या,
जिनके पानी में खोए हुए थे?

वे नशीले नयन और होंगे,
जिनमे ढलते हैं हर रात प्याले 
बाँह भी और ही होगी अब जो,
उम्र भर की थकन को सम्हाले।
ऐसी मिलती कहां अब कलाई
प्यार के जिनमें कंगन खनकते,
प्यार भी प्यार ही रह गया क्या 
कर रहे जब से व्यापार वाले?

कातिलों के निशाने पे थे पर,
हम निशानी में खोए हुए थे।

तुमको देनी थी जो दे न पाया,
चिट्ठियां आज वे सब जला दी,
देने वाले की शायद कमी थी,
मुझको चाहत मुझे ही वफा दी।
प्यार मैंने निभाया तो ऐसे,
वैसे ईश्वर न कोई निभाए।
खुद का अपराध खुद की अदालत
खुद गवाही दी खुद को सजा दी,

उम्र से पहले आया बुढ़ापा,
हम जवानी में खोए हुए थे,

पांव पत्थर जहां छील देते ,
फायदा क्या चलें उस डगर पर।
मन है ख़ाली हुई जेब ख़ाली
बोझ हूं अब तुम्हारे शहर पर,
दोष सागर का कोई नहीं था,
ना ही पतवार थी इसमें दोषी।
नाव को एक दिन डूबना है,
जब नियंत्रण न हो हर लहर पर,

तट पे तूफान आया था तब हम,
राजधानी में खोए हुए थे।


सोमवार, 4 नवंबर 2019

मेरे घर से दूर दूर ही गाओ चिड़ियों

मेरे घर को छोड़ दूर कुछ गाओ चिड़ियों,
मेरे घर कुछ अरमानों की मौत हुई है।

नागफनी उग आयी है दीवारों में 
आँगन में अंगारे चलना मुश्किल है,
सब खिड़की सारे दरवाज़े बंद करो 
मेरी छत अब चाँद निकलना मुश्किल है।

नयनों राह न देखो अब भीगी पलकों से 
सपनो के सब मेहमानों की मौत हुई है।
मेरे घर को ............................,।

भोर हवाओं का घुस आना वर्जित है 
वर्जित है सूरज की किरणों का आना।
मेरे घर में केवल तनहाई बोलेगी या,
सदियों तक बोलेगा ख़ाली पैमाना ।

प्यासे होंठों मुझसे  अब एक बूँद न माँगो 
मेरे मन के मयखानों की मौत हुई है ।
मेरे घर को ............................,।

दरिया को घमंड वह पानी पानी तो,
अधरों को है गर्व कि वह एक प्यासा है,
पत्थर समझ रहा है ख़ुद को ईश्वर तो,
वह कम है क्या जिसने उसे तराशा है।

नहीं झुकाऊंगा अब यह सर उनके आगे,
मन में जिनके सम्मानों की मौत हुई है।
मेर घर  को ............................,।

शुक्रवार, 1 नवंबर 2019

शाख से उतरा हुआ इक फूल हूं मै

शाख़ से उतरा हुआ इक फ़ूल हूँ मैं,
कौन सुनता है मेरे मन की व्यथाएँ,
लोग मुझसे हाल तेरा पूछते हैं,
तुम कहो लोगों से हम क्या-क्या बताएँ।

बाग़ के सब भ्रमर मुझसे पूछते हैं ,
अनगिनत वे सफ़र मुझसे पूछते हैं,
प्यास पहले मरी या पानी मरा था,
नदी नाले नहर मुझसे पूँछते हैं ।

पहले खारा सिन्धु था या नदी खारी
उफनती लहरों से हम क्या क्या बताएँ।
शाख़ से उतरा हुआ ......................।

क्या बताएँ राजपथ तुमने चुने हैं,
या कि तुमने स्वप्न सब ऊँचे बुने हैं
या की कह दूँ स्वर्ण मंडित कुंडलों में 
बोल पीतल के हमारे अनसुने हैं।

शोर के आगे हुए हैं गीत बौने,
काँपते अधरों से हम क्या क्या बताएँ।
शाख़ से उतरा हुआ ......................।

एक चिड़िया गुनगुनाना चाहती है 
मेरे स्वर में स्वर मिलाना चाहती है 
ज़िंदगी कहती है दुनिया जीत लेना,
मौत मिट्टी में मिलाना चाहती है ।

जिंदगी बढ़ती है ज्यो ज्यों सांस घटती
उमड़ते सपनों से हम क्या क्या बताएँ।
शाख़ से उतरा हुआ ......................।

प्रियांशु गजेन्द्र

गुरुवार, 31 अक्तूबर 2019

जिए मगर बस जैसे तैसे

आज तुम्हारे बिन चौथा दिन जिए मगर बस जैसे तैसे,
अभी जख्म ताजे ताजे थे सिए मगर बस जैसे तैसे।

भोर हुई सूरज ले आया कुछ किरणों की मद्धिम लाली,
फूलों ने मुस्कान बिखेरी पत्तों ने फेंकी हरियाली।
तारों की बारात लुट गई दूल्हा चांद नदारद नभ से,
पूरब में सोना ही सोना पश्चिम की बांहे खाली।

देता रहा दिलाशा मन को सब दिन एक नहीं रहते हैं,
सब्र किए लाखों प्रकार से किए मगर बस जैसे तैसे।

भरी दोपहरी धूप चटख थी लगा तुम्हारा ही होना,
आधे तन पर परछाई है आधे पर सोना ही सोना,
थोड़ी छाया थोड़ी गर्मी थोड़ी खुशियां थोड़े दुख हैं,
थोड़ा सा जीवन है जिसमें दुख सुख बोना ही बोना।

दीपावली मना ली हमने लगभग सारे व्रत विधान से,
तुम बिन जलना था तो जले भी दिए मगर बस जैसे तैसे।

सांझ हुई तारों का मेला जिनमें चन्दा फिरे अकेला,
पूरब का सूरज पश्चिम आया तो थी ढलने की बेला।
दो पल पूरब दो पल पश्चिम दो दो पल में सारा जीवन।
दो पल सारी राम कहानी दो पल का ही है खेला।

दो पल जीवन की मधुशाला दो दो पल के प्याले हैं सब
दो दो पल के पैमानों से हम दो दो पल पिए मगर बस जैसे तैसे।

प्रियांशु गजेन्द्र

मंगलवार, 20 अगस्त 2019

इसीलिए मैंने सम्हाल रखे हैं आँसू

इसीलिए मैंने सम्हाल रखे हैं आंसू,
बरसूंगा तो बादल अपमानित होगा।

धरती पर उग आएगी इतनी पीड़ा,
बढ़ जायेगा खारापन इन झरनों का,
दुश्मन का सम्मान बहुत बढ़ जायेगा ,
हाल कहूंगा यदि तुमसे मै अपनों का,

इसीलिए अब मौन रहूँगा सोच लिया है,
बोलूंगा तो गंगाजल अपमानित होगा।

धीरे धीरे गीत हुआ जाता है जीवन,
अंतर्मन ने विकल रागिनी साधी है,
मेरी इच्छाओं के विरुध्द सपने लाई,
हर रात हमारे नयनों की अपराधी है।

इसीलिए मै देख न पाया स्वप्न तुम्हारे,
देखूंगा मै तो पागल अपमानित होगा।

यह विछोह की रात और यह सूनापन,
हर ओर उदासी में डूबा डूबा जीवन,
वह चाँद जिसे मैंने केवल अपना समझा,
दे रहा गगन के सब तारों को आमंत्रण।

इसीलिए सब दीपक बुझा रहा हूँ प्रियवर,
जागा तो तारामंडल अपमानित होगा।

प्रियांशु गजेन्द्र

मेरे गीत न गाना मेरी

मेरे गीत न पढ़ना मेरी सोन चिरैया,
वरना नभ में उड़ना दूभर हो जाएगा।

बादल तुम्हें लगेंगे मेरे आँसू जैसे,
तारे लगेंगे मेरे डब डब नयना हैं।
चाँद लगेगा तुमको मेरी भोली सूरत
सूरज जैसे तपता मेरा बिछौना है।

मुझे न रखना अपने मन मंदिर में वरना,
यह तन मानव से ईश्वर हो जाएगा ।

हवा लगेगी महकी महकी साँसें मेरी,
गगन लगेगा फैली-फैली बाहें हैं,
तुम उन्मुक्त गगन के पंछी प्रियतम मेरे,
उछ्वासों तक जाती मेरी राहें हैं।

मत ठहरो धरती पर मेरी ख़ातिर वरना
यह जीवन नभ से ऊपर हो जाएगा।

अम्बर का हर कोना स्वागत करे तुम्हारा
तारे बिछ बिछ जाएँ पावन चरणों में,
मंगल गीत सुनाएँ तुमको दसों दिशाएँ
सपने तरस जायँ आने को सपनों में।

जाओ जाओ बुलबुल इस बगिया से वरना
इसका भी तृण तृण सुंदर हो जाएगा।

प्रियांशु गजेन्द्र

सोमवार, 29 जुलाई 2019

नयना कजरारे

काजल से तो कभी कपट से,
बाहर कभी कभी घूँघट से,
इन नयनों ने जाने कितने नयन नयन से मारे,
नयना कजरारे
              दुश्मन हुए हमारे
                              नयना कजरारे।

एक पलक में चाँद का टुकड़ा एक पलक में तारा,
उठे पलक तो मगन चाँदनी गिरे गहन अंधियारा ।
अलसाए तो भोर सरीखे,
जाग उठे तो दीपक घी के,
एक बार लग जाए नज़र उतरेगी नहीं उतारे।
नयना कजरारे,
                दुश्मन हुए हमारे नयना कजरारे।
मिलें नयन तो मदिरा मदिरा मिले बिना मधुशाला,
डूब जाओ तो सागर लगते उतराओ तो प्याला,
तिरछे तिरछे तेज़ कटारी
सीधे सीधे लगें दुधारी,
प्यार करें तो चंदन चंदन क्रोध भरे अंगारे,
नयना कजरारे
                  दुश्मन हुए हमारे नयना
इन नयनों ने योगी भोगी सबको नाच नचाया
नटवर नागर नाच उठे इन्हें जब राधा ने पाया,
वे नयना थे वृंदावन के,
ये दो नयना मेरे मन के,
किशन कन्हैया बन जाऊँ मेरी राधा मुझे निहारे।
नयना कजरारे,
                दुश्मन हुए हमारे
                                नयना कजरारे।

इन नयनो को कभी किसी बेबस को नहीं दिखाना,
निर्धन हो तो उठा के चलना धन मिल जाए झुकाना,
बंद रखो यदि दिखे बुराई,
खोलो तो देखो अच्छाई।
सबको प्यार करो दुनिया में रहकर सबके प्यारे !
नयना कजरारे,
                दुश्मन हुए हमारे
                                नयना कजरारे।

भूलकर पायल गयी है गांव में

लौटकर आएगी एक दिन,
कैसे बीतेंगे कई दिन
दृष्टि जाएगी कभी जब पाँव में,
भूलकर पायल गयी है गाँव में।

गीत मेरे कान में उनके पड़ेंगे,
तब क़दम उल्टे कभी सीधे पड़ेंगे,
वे विदुर घर साग रोटी खा गई है
इंद्रप्रस्थी भोज अब फीके पड़ेंगे।

मन है चंचल वक़्त है ठहराव में
भूलकर ...........................।

जब गगन भर लाएगा बादल में पानी,
महक बिखराएगी जब भी रात रानी
मखमली तकिये में सुख कैसे मिलेगा
जिसने देखी बाँह की यह राजधानी,

दिल भुला बैठी है दिल बहलाव में,
भूलकर ...............................।

भाव कैसा आज रोटी दाल का है,
सिन्धु क्या है और छिछला ताल क्या है
बिन हमारे एक पल क्या रह सकेगी
जब पता होगा कि मेरा हाल क्या है?

वह न भटकेगी किसी भटकाव में,
भूलकर ................................।
💐💐💐

बुधवार, 10 जुलाई 2019

अब न आऊंगा तुम्हारे द्वार

अब न आऊँगा तुम्हारे द्वार
यह लो जा रहा हूँ,
हार मेरी है मुझे स्वीकार,
यह लो जा रहा हूँ,
चाहते हो यदि मुझे बिल्कुल भुलाना,
गीत मेरे भूलकर मत गुनगुनाना,
जब लगे अवसाद में डूबा हुआ हूँ,
तुम जहाँ होना वहीं से मुस्कुराना।

मुस्कुराहट रूप का सिंगार
यह लो जा रहा हूँ।

मेरे दिल में तुम हो पर ताले नहीं हैं
रुक तो जाता रोकने वाले नहीं हैं
राधिका के प्रेम की दुनिया प्रशंशक,
कृष्ण का तप देखने वाले नहीं हैं।

व्यर्थ लगता हो गया अवतार
यह लो जा रहा हूँ।

जिस हृदय में प्यार की दौलत नही है,
वह हृदय वह घर है जिसमें छत नही है,
मैं वहाँ सूरज उगाने चल पड़ा था,
जिसके घर में धूप की क़ीमत नही है ।

हो गयी हर किरण अस्वीकार ,
यह लो जा रहा हूँ।

अध्याय पूरा कर दिया

मैं तुम्हारे प्रेम की बस भूमिका ही लिख रहा था,
और तुमने आख़िरी अध्याय पूरा कर दिया ।

पृष्ठ पर अक्षर न उभरे जिल्द पर छायी न लाली,
तूलिका मैंने न अब तक हाथ में अपने सम्हाली,
चाह थी हर एक पन्ने पर तुम्हारा नाम लिखता,
हाय तुमने तो अचानक लेखनी ही तोड़ डाली,

ज़िंदगी के सरस मधुवन का तुम्हें लिखता सुमन मैं,
किन्तु तुमने चुभन का पर्याय पूरा कर दिया ।
मैं तुम्हारे .........................................।

जानता था तुम न मेरे साथ मंज़िल तय करोगी,
बस हमारी ज़िंदगी के क़ीमती पल क्षय करोगी ।
बस यही मालूम ना था दिल से मैं चाहूँगा तुमको,
और तुम हर पल हमारे साथ बस अभिनय करोगी।

चाहता था मैं तुम्हें शीतल पवन या छांव लिखना
किन्तु तुमने तपन का अभिप्राय पूरा कर दिया ।
मैं तुम्हारे ..............................................।

तुम निकलना चाहते थे आ गया तुमको निकलना,
पर किसी सूरज के आगे फिर कभी भी मत पिघलना,
तुम तो दरिया बन किसी सागर से जाकरके मिलोगे,
किन्तु सूरज को पड़ेगा एक नही सौ बार ढलना।

प्यार है अपराध मेरा हद से ज़्यादा कर गया मैं,
और तुमने दर्द देकर न्याय पूरा कर दिया ।
मैं तुम्हारे .......……..............................।

बुधवार, 26 जून 2019

मुक्तक

1**********

यह भँवर है पर निकलना ही पड़ेगा,
है तो मुश्किल पर सम्हलना ही पड़ेगा,
आपकी जब देखने की दृष्टि बदली,
रूप मुझको भी बदलना ही पड़ेगा।

2********

जा रहा हूँ अब तुम्हारे शहर से मैं,
भोर संध्या रात से दोपहर से मैं,
चाहता तो था तुम्हारी ग़ज़ल होना,
किन्तु ख़ारिज हूँ तुम्हारी बहर से मैं।

3*********

मंगलवार, 25 जून 2019

आज मन बोझिल बहुत है।

आज मन बोझिल बहुत है,

मेघ घिर आये गगन में,
बूंद बन छाए नयन में,
आज कुछ ऐसा हुआ है,
जो न सोचा था सपन में।

राह में ठोकर लगी है दूर भी मंजिल बहुत है,
आज मन बोझिल बहुत है।

कुछ कही कुछ अनकही हैं,
पीर सब मैने सही है,
देह दुनिया घूमती पर,
आत्मा जिसकी रही है
आज वह मुझसे विमुख है,
जिसमे मेरा सर्व सुख है,

उनको मालुम भी नही है मेरा मन चोटिल बहुत है
आज मन बोझिल बहुत है।

उसने कुछ अंतस पढा था,
मेरा कुछ साहस बढ़ा था,
तुच्छ माला फूल थे पर,
पूजने का ज्वर चढ़ा था।
देवता तो देवता है,
उसकी भी तो क्या खता है,

मैंने जो कुछ खो दिया है उनको वह हासिल बहुत है।
आज मन बोझिल बहुत है।
प्रियांशु गजेन्द्र।

बुधवार, 29 मई 2019

मुक्तक

***
द्रोह से देशभक्ति बड़ी हो गयी,
जिससे कमलों की लंबी लड़ी हो गयी,
चौकीदारों ने दिल ऐसा चोरी किया,
साहूकारों की खटिया खड़ी हो गयी।
*****
हृदय में प्यार मेरा जल रहा है,
मेरा महबूब मुझको छल रहा है,
अकेला भाग्य का मारा नहीं मैं,
यहाँ साइकिल से हाथी चल रहा है।
*****
मेरे दुःख में दुःख उठाना चाहते हैं,
या की बस फ़ोटो खिंचाना चाहते हैं,                    
पाप पिछले जन्म में हमने किये थे,
आप क्यों  गंगा नहाना चाहते हैं।
*****
लाल पीला हरा कत्थई रंग गया,
स्वप्न सारे सुखद सुरमयी रंग गया,
तन तो रंगता रहा है कई साल से,
किन्तु इस बार मन भी कोई रंग गया।
*****

रंग चेहरे का व शोखी जा रही है,
व्यर्थ सारी शक्ति झोंकी जा रही है,
भूल जाना है उसे यह याद करके,
आग से बारूद रोकी जा रही है।
*****
हर निशानी मैं मिटाने जा रहा हूँ,
अब तुम्हारे ख़त जलाने जा रहा हूँ,
भूलना तो जा रहा पर जानता हूँ,
आग से पानी बनाने जा रहा हूँ।,
******
नैन के तीर अब सम्हालोगे,
या कि यूं ही कटार ढालोगे,
रूप से तुम अमीर हो तो क्या?
हम गरीबों को मार डालोगे?
*******
जाने कितने हैं ख्वाब आंखों में,
प्यार की है किताब आंखों में,
रोज कांटों में जी रहा फिर भी,
रोज रहता गुलाब आंखों में।
*****
वह है झूठी मगर इतनी झूठी नही
पर कई दिन हुए मुझसे रूठी नही
दूर सारा भरम हो गया देखकर
उसकी उँगली में मेरी अँगूठी नही।
********
अब नही ही निहारा तो फिर क्या हुआ,
अपने दिल से उतारा तो फिर क्या हुआ,
हारकर जब सिकंदर गया है यहाँ,
प्यार में मैं भी हारा तो फिर क्या हुआ।
******
थक गए हैं बहुत फिर भी हारे नही
इतने भी डूबे अपने सितारे नहीं।
उसने कंगन किसी के पहन तो लिए
मेरे कंगन भी उसने उतारे नही।
******
देख लेती है तो मुस्कुराती तो है,
भाव देती नही भाव खाती तो है
उसने पहने हो पायल किसी के भले
आके मेरी गली में बजाती तो है
*****
तुमने इतना अमृत घोला हम घोलें तो क्या घोलें,
मन की गांठे खोल चुके सब हम खोलें तो क्या खोलें,
तुम तैयार खड़े जाने को कहते हो कुछ तो बोलो,
तुम ही बोलो तुम जाते हो हम बोलें तो क्या बोलें।
*****
आँसू पी पी कर ज़ख़्मों को भरते ना तो क्या करते,
मर मर कर जीना था आख़िर मरते ना तो क्या करते,
धीरे धीरे तुमने अपने दिल को पत्थर कर डाला,
हम भी अपने दिल पर पत्थर धरते ना तो क्या करते।
*****
मनाऊँगी मैं होली अपने बलबूते नहीं साजन,
गुलाबी गाल तुम आकर अगर छूते नहीं साजन,
गले आकर मिलो मुझसे भला भयभीत क्यो हो तुम,
हमारे हाथ पिचकारी ही है जूते नहीं साजन।
********
न मालुम था कि मेरे प्यार का व्यापार बनना है।
तिलक समझा न समझा पाँव का श्रृंगार बनना है,
तुम्हें राजा बनाना चाहता था अपने दिल का मैं,
मगर ज़िद है तुम्हारी तुमको चौकीदार बनना है
*******
ज़ुबाँ वश में नही तो बात को कहना भी सीखो,
उजाला चाहिए तो रात को सहना भी सीखो
मेरे महबूब के चेहरे से अपना रंग मिला बैठे
गुलाबों हद हुई औक़ात में रहना भी सीखो।
********
प्यार है तो प्यार को कहते नहीं क्यों,
आप अपने आप में रहते नहीं क्यों ।
रात भर आकाश में क्या देखते हो ,
देखते हो देखकर थकते नही क्यों।
******
कल न होंगे हम न मेरा प्यार होगा,
प्यार के दफ्तर में तब रविवार होगा,
चाय से झुलसेंगे दोनों होंठ तेरे,
सामने जब भोर का अखबार होगा,
******
मुझसे मुंह मोड़कर तो चले जाओगे,
अपने दिल को भला कैसे समझाओगे,
तोड़ना ही है तो मेरा दिल तोड़िये,
आईने तोड़कर आप क्या पाओगे।
******
फूल की चाह को हार ने सुन लिया,
नाव की राह पतवार ने सुन लिया,
कोई आवाज मेरी सुने ना सुने,
प्यार को प्यार से प्यार ने सुन लिया।

मंगलवार, 28 मई 2019

छन्द (घनाक्षरी)

(1)

राह है अलग भले मंज़िल है एक मेरी क्षमता है कम तेरी क्षमता विशेष है ।

राजस्थानी गोरी तेज़ तेरी है ज़ुबान मीठी मीठी बोली वाला मेरा उत्तर प्रदेश है ।

तोड़ तोड़कर फेंकती हो कई बार दिल टूट भी गया है और टूटना भी शेष है ।

और तोड़ने का मन हो तुम्हारा तो बताओ टूटा टूटा दिल फिर तोड़ने को पेश है।

(२)

लहर लहर लहराए ओढ़नी का छोर चोरनी चली गयी है लाखों दिल चोरकै,

गोरे गोरे गाल लाल लाल ऐसी लाल जैसे किरण उतर आयी नदिया में भोर कै

चली तो चली कि ऐसी चलती चली गयी यूँ लहर उठी लहर लहर हिलोर कै

नागिन शरम से हुई है पानी पानी और देंह जल गयी सारी मोरनी के मोर कै।

(३)

चित्र तो विचित्र है चरित्र राम जाने किन्तु मन हो गया पवित्र नयनों में देखकर,

धीरे धीरे नींद ने पवित्रता बढ़ाई और पलकें हुई पवित्र सपनों में देखकर ।

हो गया पवित्र जैसे किष्किन्धा सम्राट राम जैसा वीर योद्धा अपनों में देखकर 

जूठे बेर देके जैसे शबरी पवित्र हुई केवट पवित्र हुआ चरणों में देखकर।

(४)

पंख कटवाये गीधराज हो गये पवित्र रावण पवित्र हुआ राम जी के बैर से 

भरत पवित्र हुए राम के खड़ाऊँओं से हो गयी अहल्या श्रीराम जी के पैर से,

होना है पवित्र रामजी के काम में पधारो आस न उम्मीद करो और किसी ग़ैर से 

ख़ैर चाहते तो ख़ैर इतनी रहे कि ख़ैर सबकी रहेगी सदा राम जी की ख़ैर से ।

(५)

नैन अपने रखो हमारे नयनों से दूर वरना कहोगी मेरे नैन भरमा गये,

नाचेंगे इशारे पर नैन कजरारे मेरे नैन के इशारे यदि एक बार पा गये।

दिल से निकालने की कोशिश करोगे किन्तु ना निकाल पाओगे कहीं जो हम भा गये।

आना मत पास वरना न दूर जा सकोगी,दूर जाओगे लगेगा और पास आ गये।

(६)

जानना ही चाहती हो जान लो की जान था मै जानबूझकर अनजान ना बना करो।

मानों या न मानों कभी था तुम्हारा मेहमान मान दो न दो परन्तु अपमान ना करो।

ठोकर लगानी थी लगा चुकी हो जीवन में चोट कितनी लगी है अनुमान ना करो।

अनदेखा करो प्यार से किसी को देखना जो लगे एहसान तो ये एहसान न करो।

(७)

समय की बात है समय से चला मगर समय भी क्या करे  समय ख़राब हो 

समय है एक वृक्ष एक डाल किंतु एक ही जगह एक काँटा दूसरा गुलाब हो 

समय है एक ग्रंथ धूल फाँकता मिलेगा समय का एक पन्ना ही बड़ी किताब हो 

समय ज़रूर आएगा कभी न कभी जब प्यार का सवाल हो तो प्यार ही जवाब हो।


बुधवार, 1 मई 2019

जिन हवाओं में घुलेंगे गीत मेरे

जिन हवाओं में घुलेंगे गीत मेरे
उन हवाओं में नमी आ जाएगी,

पृष्ठ सब भीगे हुए हैं डायरी के,
शब्द सारी रात कल सोए नही हैं,
और काग़ज़ भीगकर दरिया हुआ है,
नयन तो इतना कभी रोए नहीं हैं।

लिखके सारा दर्द तो ना मिट सकेगा
पर दवाओं में कमी आ जाएगी ।

अर्थ पर हमने बहुत अंकुश रखा है,
जान पाओगे न तुम मेरी कहानी,
समझना चाहो तो बस इतना समझ लो,
आग मन की बह रही है बनके पानी।

प्यार में जलकर कभी देखो किसी के,
रात थोड़ी शबनमी आ जाएगी ।

ज़िंदगी का एक हिस्सा वेदना का,
एक हिस्सा मौत का उपहास है,
एक हिस्से में भरत को राजधानी
दूसरे में राम का वनवास है।

नभ में रहने वालों यह पैग़ाम सुन लो
पाँव तक एक दिन ज़मी आ जाएगी

प्रियान्शु गजेन्द्र

मंगलवार, 30 अप्रैल 2019

सोन चिरैया बाग छोड़कर

डाली डाली है उदास हर पत्ता-पत्ता,
सोन चिरैया चमन छोड़कर चली गयी है।

अब बहार आए या जाए,
कोई कुसुम कहीं मुस्काए।
बहके पुरवाई ना बहके,
बादल छाए या ना छाए,
धूमिल धूमिल रंग हुआ जाता दर्पण का,
रंगत मुख से नयन मोड़कर चली गयी है ।

जिसके लिए लगाया जीवन
रोता छोड़ गया वह उपवन,
विष पीकरके मौन खड़े हैं
कितने ही बरसों से चंदन।
सात जन्म जीने की क़समें खाने वाली
बस दो पल में लगन तोड़कर चली गयी ।

जीवन है जीवन की आशा
ख़त्म नही होती परिभाषा
हीरे को अक्सर लोहे के,
औज़ारों से गया तराशा।
जिसने नयन मिलाकर सारे स्वप्न दिखाए
वह आँसू से नयन जोड़कर चली गयी ।
Priyanshu gajendra

सोमवार, 29 अप्रैल 2019

ओ नदी दुनिया तुम्हें

जा रही हो प्यास का अपमान करके
ओ नदी दुनिया तुम्हें क्या क्या कहेगी ?

हाल जीवन मरण का किससे कहेंगे ?
ये किनारे अब व्यथा किससे कहेंगे ?
जाल डालेगा मछेरा किस लहर पर?
डाल के पंछी कथा किससे कहेंगे ?

डूब जाओ जाओ मत स्नान करके
ओ नदी दुनिया तुम्हें क्या क्या कहेगी ?

प्यार करना और करके छोड़ देना,
मैंने सीखा ही नही मुँह मोड़ लेना,
तुमने सीखा दिल जहाँ पत्थर बनाना
मैंने सीखा पत्थरों को तोड़ लेना,

मौन हूँ बस दर्द का अनुमान करके
ओ नदी दुनिया तुम्हें क्या क्या कहेगी।

साथ आया कौन जग में साथ जाये,
साथ रहने के नियम हमने बनाए
दिल तो मरुथल ही दिया परमात्मा ने,
प्यार के दो फ़ूल तो हमने खिलाए,

जाओगी उपवन को रेगिस्तान करके,
ओ नदी दुनिया तुम्हें क्या क्या कहेगी।

Priyanshugajendra

शुक्रवार, 22 मार्च 2019

बैरंग वापस लौटा अनंग

बैरंग वापस लौटा अनंग,
उतरा उतरा सब प्रेम रंग
जो शेष बचा भी है अब तक तैयार खड़े तुम धोने को,
तुमको खोने के बाद भला क्या और बचेगा खोने को ।

तुमने जो रंग लगाया है वह रंग न मुझसे छूटेगा,
साँसों में महकेगा अबीर सुख चैन सभी कुछ लूटेगा,
माना मैं टूट गया हूँ अब तुमको हर बार जोड़ने में ,
फिर भी आशा थी यह बंधन ताउम्र न तुमसे टूटेगा।
मुझसे हर नाता तोड़ रहे ,
अब जब मुझसे मोड़ रहे,
जाओ स्वतंत्र होकर जाओ अब नहीं कहूँगा ढोने को
तुमको खोने ………..............................।

चेहरे पर लाखों चेहरे हैं आख़िर रंगते कितने चेहरे,
हर चेहरे के पीछे ममता के दूत खड़े गूँगे बहरे।
फूलो से कोमल गालों को भाते फूलों के रंग नहीं,
ख़ाली जेबों के बलबूते अब रंग कहाँ मिलते गहरे।
सोने चाँदी से तोली थी,
अब होली ऐसी होली थी,
सस्ती पिचकारी को महँगी चूनर ना मिली भिगोने को
तुमको खोने ...........................................।

सारी दुनिया बाज़ार हुई चेहरा ले लो चाहे गुलाल,
कुछ रंगे रंगाए चेहरे हैं ऊपर से दिखते लाल लाल,
कुछ मौन हुए ऐसे चेहरे जिनको चेहरों की चाह न
कुछ उत्तर देते हैं चेहरे कुछ ख़ुद ही बन बैठे सवाल ।
एक चेहरा ख़ाली ख़ाली है
ना रंगत है ना लाली है,
वह है शहीद कि बेवा का जिसे बाँह मिली ना रोने को
तुमको खोने .................……………।

बुधवार, 6 मार्च 2019

कह दूँगा बादल से

सोच रहा था अबकी जब भी फिर से सावन आएगा,
कह दूँगा बादल से तेरी याद न फिर से लाएगा।

माटी से कह दूँगा वह फिर सोंधी गंध न बिखराए,
और कहूँगा पुरवा से वह थोड़ा कम कम इठलाए,
दूबों से कह दूँगा अपने मोती अपने पास रखें,
सूरज को ले जाना है धरती पर आकर ले जाए।

सोच  रहा था अबकी जब भी कहीं पपीहा गायेगा।
कह दूँगा उपवन से तेरी याद न फिर से लाएगा।

नदियाँ गाते गाते यदि फिर ज़िक्र तुम्हारा कर बैठी,
लहरें पूछेंगी तुम मेरे साथ नही तट पर बैठी,
सीप शंख सब पहचाने हैं उनको क्या बतलाऊँगा,
तुम पारस की चाहत में इस कंकड़ को बिसरा बैठी ,

सोच रहा था मांझी फिर से गीत तुम्हारा गायेगा,
कह दूंगा सरगम से तेरी याद न फिर से लाएगा।

सोच रहा हूँ दूर कोई क्यों दूर किसी से होकर,
कही किसी को पा लेता क्या कहीं किसी को खोकर
पत्थर से टकराकर लहरें चीख़ चीख़ कहती हैं,
ठोकर मारने वाले अक्सर खा जाते हैं ठोकर।

सोंच रहा था पत्थर से जब मेरा सर टकराएगा।
कह दूँगा मरहम से अबकी तेरी याद न लाएगा।।

सोमवार, 25 फ़रवरी 2019

नया साल फिर याद पुरानी

नया साल फिर याद पुरानी
प्यार कहो या फिर नादानी
मैंने फिर एक साल पुराना चित्र हृदय में बना लिया है।
बिना तुम्हारे नया साल फिर किसी तरह से मना लिया है।

डगमग दृष्टि तुम्हारी लेकरके आँगन में चौक पुराए,
अधरों से कुछ लाली लेकर उन पर थोड़े रंग चढ़ाए,
गोरा रंग वदन से लेकर थोड़ी धूप खिलायी मैंने ,
धूप तुम्हारी पाकर गमले वाले फ़ूल बहुत मुस्काए,

मन से सबकुछ किया मगर मन ही मन सब अनमना किया है।
बिना तुम्हारे ..........................................।

तुम बोलो अपने बारे में कैसा साल तुम्हारा बीता
इस दौलत के खुले युद्ध में तुमने क्या हारा क्या जीता,
जीवन के रंगीन सफ़र में मिला कौन किसका संग छूटा
भरा तुम्हारा दौलत का घट या फिर अभी रह गया रीता,

किसको कितना सुना और किसको कितना अनसुना किया है
बिना तुम्हारे ..........………........................।

ईश्वर करे तुम्हारे यश वैभव में चार चाँद लग जाएँ
स्तुति करें देवता द्वारे देवपुत्रियाँ मंगल गाएँ ,
जो कुछ अब तक नही मिला है ईश्वर दे दे नए वर्ष में,
आप हर्ष से वर्ष वर्ष भर जीवन में नव वर्ष मनाएँ ।

फल तुमको मिल जाएँ मैंने अब तक आराधना किया है
बिना तुम्हारे .................................................।

तुम्हीं नहीं मिले नहीं तो और

जो भाग्य में था वह मिला नही था जो नही मिला        
तुम्हीं नही मिले नही तो और क्या नही मिला

मैं चाहता न था तुम्हीं तो चाहती थी चाह लूँ ,
मैं चाहने लगा तो चाहती हो अपनी राह लूँ ,
निबाह ना सकोगी बार बार कह रहा था पर ,
तुम्हीं ने यह कहा था तुम रहो तो सब निबाह लूँ ।
निबाह तो दिया मगर निबाहकर भी क्या मिला,
तुम्हीं नही मिले भला ............................

खुला खुला गगन है पंख बिन गगन का क्या करूँ ?
सपन हुए सपन तुम्हीं कहो सपन का क्या करूँ?
नयन में तुम हो पर नयन के सामने नहीं तो फिर
नही हो सामने तुम्हीं कहो नयन का क्या करूँ ?
नयन से ना मिले नयन तो फिर नयन को क्या मिला,
तुम्हीं नहीं मिले .............।

चले गए हो तुम चले गए तो सब चला गया,
चला गया है सब गया तो क्या नही चला गया,
ये प्यार था या छल था छल था या कि प्यार क्या पता
हो प्यार या कि छल मगर मैं प्यार में छला गया।

जला है रात दिन वदन जला जलन को क्या मिला?
तुम्हीं नही मिले.................।


आँसुओं की जहाँ बात होगी

क्या कभी सोंचा भँवर का क्या हुआ


डूबकर तुम तो किनारा पा गये ,
क्या कभी सोंचा भँवर का क्या हुआ?
जो तुम्हारे साथ थी लौटी नहीं,
क्या कभी सोंचा लहर का क्या हुआ?

जो लिए था कल तुम्हें आग़ोश में,
आज उसकी बाँह में कोई नही,
कश्तियाँ उससे किनारा कर गयी,
और लहरें रात भर सोयी नहीं।

जो अधूरी छोड़ दी तुमने ग़ज़ल,
क्या कभी सोंचा बहर का क्या हुआ?

तुम कमल की पांखुरी सी जी रही,
जल में रहकर जल से जो निर्लिप्त है।
जल में रहकर मैं जो जल में मिल गया,
मुझको दुनिया कह रही विक्षिप्त है।

रेत पर हमने बसाया था जिसे
क्या कभी सोंचा शहर का क्या हुआ।

पत्थरों के भाग्य में ही है लिखा
उम्र भर ठोकर लगानी है उन्हें,
किन्तु पाँवों से भला किसने कहा?
साथ ही उनके निभानी है उन्हें ।

ठोकरें खाए बिना ही जो चला
क्या कभी सोंचा सफ़र का क्या हुआ?

Priyanshu प्रियाँशु गजेन्द्र

शनिवार, 23 फ़रवरी 2019

तुम्हारी याद साथी है

तुम नही हो तो तुम्हारी याद साथी है
याद ऐसी जो तुम्हारे बाद साथी है।

मै अकेला कब रहा तुम थे हमारे साथ मन में
सामने जब थे तो थे नहीं थे तो थे जज्बात मन में,
प्यार के आगे भला क्या टिक सकेंगी दूरियां भी
कुछ नही रहता तो रहती है तुम्हारी बात मन में।
मरहमों से क्या गिला आघात साथी है,
तुम नहीं हो तो तुम्हारी......................।

विरह में जलकर भी हमने बस तुम्हार ताप देखा,
बस तुम्हें देखा किसी को देखने में पाप देखा
प्यार में मर मर के जीना कोई क्या दिखलायेगा
जो भी देखा प्यार करके मैने अपने आप देखा।
स्वर नहीं तो मौन का संवाद साथी है।
तुम नहीं हो तो तुम्हारी......................।

तन भले है दूर कितना मन मे अब भी चित्र तेरा,
आज इन टेंसू के फूलों ने जिसे फिर फिर उकेरा
ओ हवा रुक जा तनिक उपहार दे देना उसे कुछ
स्वांस की खूशबू से खुश हो जाएगा वह मित्र मेरा
और कहना उम्र भर अवसाद साथी है ।
तुम नही हो तो तुम्हारी याद.......।