लौटकर आएगी एक दिन,
कैसे बीतेंगे कई दिन
दृष्टि जाएगी कभी जब पाँव में,
भूलकर पायल गयी है गाँव में।
गीत मेरे कान में उनके पड़ेंगे,
तब क़दम उल्टे कभी सीधे पड़ेंगे,
वे विदुर घर साग रोटी खा गई है
इंद्रप्रस्थी भोज अब फीके पड़ेंगे।
मन है चंचल वक़्त है ठहराव में
भूलकर ...........................।
जब गगन भर लाएगा बादल में पानी,
महक बिखराएगी जब भी रात रानी
मखमली तकिये में सुख कैसे मिलेगा
जिसने देखी बाँह की यह राजधानी,
दिल भुला बैठी है दिल बहलाव में,
भूलकर ...............................।
भाव कैसा आज रोटी दाल का है,
सिन्धु क्या है और छिछला ताल क्या है
बिन हमारे एक पल क्या रह सकेगी
जब पता होगा कि मेरा हाल क्या है?
वह न भटकेगी किसी भटकाव में,
भूलकर ................................।
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Bahut sunder bhaiya
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