डाली डाली है उदास हर पत्ता-पत्ता,
सोन चिरैया चमन छोड़कर चली गयी है।
अब बहार आए या जाए,
कोई कुसुम कहीं मुस्काए।
बहके पुरवाई ना बहके,
बादल छाए या ना छाए,
धूमिल धूमिल रंग हुआ जाता दर्पण का,
रंगत मुख से नयन मोड़कर चली गयी है ।
जिसके लिए लगाया जीवन
रोता छोड़ गया वह उपवन,
विष पीकरके मौन खड़े हैं
कितने ही बरसों से चंदन।
सात जन्म जीने की क़समें खाने वाली
बस दो पल में लगन तोड़कर चली गयी ।
जीवन है जीवन की आशा
ख़त्म नही होती परिभाषा
हीरे को अक्सर लोहे के,
औज़ारों से गया तराशा।
जिसने नयन मिलाकर सारे स्वप्न दिखाए
वह आँसू से नयन जोड़कर चली गयी ।
Priyanshu gajendra