मंगलवार, 30 अप्रैल 2019

सोन चिरैया बाग छोड़कर

डाली डाली है उदास हर पत्ता-पत्ता,
सोन चिरैया चमन छोड़कर चली गयी है।

अब बहार आए या जाए,
कोई कुसुम कहीं मुस्काए।
बहके पुरवाई ना बहके,
बादल छाए या ना छाए,
धूमिल धूमिल रंग हुआ जाता दर्पण का,
रंगत मुख से नयन मोड़कर चली गयी है ।

जिसके लिए लगाया जीवन
रोता छोड़ गया वह उपवन,
विष पीकरके मौन खड़े हैं
कितने ही बरसों से चंदन।
सात जन्म जीने की क़समें खाने वाली
बस दो पल में लगन तोड़कर चली गयी ।

जीवन है जीवन की आशा
ख़त्म नही होती परिभाषा
हीरे को अक्सर लोहे के,
औज़ारों से गया तराशा।
जिसने नयन मिलाकर सारे स्वप्न दिखाए
वह आँसू से नयन जोड़कर चली गयी ।
Priyanshu gajendra

सोमवार, 29 अप्रैल 2019

ओ नदी दुनिया तुम्हें

जा रही हो प्यास का अपमान करके
ओ नदी दुनिया तुम्हें क्या क्या कहेगी ?

हाल जीवन मरण का किससे कहेंगे ?
ये किनारे अब व्यथा किससे कहेंगे ?
जाल डालेगा मछेरा किस लहर पर?
डाल के पंछी कथा किससे कहेंगे ?

डूब जाओ जाओ मत स्नान करके
ओ नदी दुनिया तुम्हें क्या क्या कहेगी ?

प्यार करना और करके छोड़ देना,
मैंने सीखा ही नही मुँह मोड़ लेना,
तुमने सीखा दिल जहाँ पत्थर बनाना
मैंने सीखा पत्थरों को तोड़ लेना,

मौन हूँ बस दर्द का अनुमान करके
ओ नदी दुनिया तुम्हें क्या क्या कहेगी।

साथ आया कौन जग में साथ जाये,
साथ रहने के नियम हमने बनाए
दिल तो मरुथल ही दिया परमात्मा ने,
प्यार के दो फ़ूल तो हमने खिलाए,

जाओगी उपवन को रेगिस्तान करके,
ओ नदी दुनिया तुम्हें क्या क्या कहेगी।

Priyanshugajendra