बुधवार, 29 मई 2019

मुक्तक

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द्रोह से देशभक्ति बड़ी हो गयी,
जिससे कमलों की लंबी लड़ी हो गयी,
चौकीदारों ने दिल ऐसा चोरी किया,
साहूकारों की खटिया खड़ी हो गयी।
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हृदय में प्यार मेरा जल रहा है,
मेरा महबूब मुझको छल रहा है,
अकेला भाग्य का मारा नहीं मैं,
यहाँ साइकिल से हाथी चल रहा है।
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मेरे दुःख में दुःख उठाना चाहते हैं,
या की बस फ़ोटो खिंचाना चाहते हैं,                    
पाप पिछले जन्म में हमने किये थे,
आप क्यों  गंगा नहाना चाहते हैं।
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लाल पीला हरा कत्थई रंग गया,
स्वप्न सारे सुखद सुरमयी रंग गया,
तन तो रंगता रहा है कई साल से,
किन्तु इस बार मन भी कोई रंग गया।
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रंग चेहरे का व शोखी जा रही है,
व्यर्थ सारी शक्ति झोंकी जा रही है,
भूल जाना है उसे यह याद करके,
आग से बारूद रोकी जा रही है।
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हर निशानी मैं मिटाने जा रहा हूँ,
अब तुम्हारे ख़त जलाने जा रहा हूँ,
भूलना तो जा रहा पर जानता हूँ,
आग से पानी बनाने जा रहा हूँ।,
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नैन के तीर अब सम्हालोगे,
या कि यूं ही कटार ढालोगे,
रूप से तुम अमीर हो तो क्या?
हम गरीबों को मार डालोगे?
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जाने कितने हैं ख्वाब आंखों में,
प्यार की है किताब आंखों में,
रोज कांटों में जी रहा फिर भी,
रोज रहता गुलाब आंखों में।
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वह है झूठी मगर इतनी झूठी नही
पर कई दिन हुए मुझसे रूठी नही
दूर सारा भरम हो गया देखकर
उसकी उँगली में मेरी अँगूठी नही।
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अब नही ही निहारा तो फिर क्या हुआ,
अपने दिल से उतारा तो फिर क्या हुआ,
हारकर जब सिकंदर गया है यहाँ,
प्यार में मैं भी हारा तो फिर क्या हुआ।
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थक गए हैं बहुत फिर भी हारे नही
इतने भी डूबे अपने सितारे नहीं।
उसने कंगन किसी के पहन तो लिए
मेरे कंगन भी उसने उतारे नही।
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देख लेती है तो मुस्कुराती तो है,
भाव देती नही भाव खाती तो है
उसने पहने हो पायल किसी के भले
आके मेरी गली में बजाती तो है
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तुमने इतना अमृत घोला हम घोलें तो क्या घोलें,
मन की गांठे खोल चुके सब हम खोलें तो क्या खोलें,
तुम तैयार खड़े जाने को कहते हो कुछ तो बोलो,
तुम ही बोलो तुम जाते हो हम बोलें तो क्या बोलें।
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आँसू पी पी कर ज़ख़्मों को भरते ना तो क्या करते,
मर मर कर जीना था आख़िर मरते ना तो क्या करते,
धीरे धीरे तुमने अपने दिल को पत्थर कर डाला,
हम भी अपने दिल पर पत्थर धरते ना तो क्या करते।
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मनाऊँगी मैं होली अपने बलबूते नहीं साजन,
गुलाबी गाल तुम आकर अगर छूते नहीं साजन,
गले आकर मिलो मुझसे भला भयभीत क्यो हो तुम,
हमारे हाथ पिचकारी ही है जूते नहीं साजन।
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न मालुम था कि मेरे प्यार का व्यापार बनना है।
तिलक समझा न समझा पाँव का श्रृंगार बनना है,
तुम्हें राजा बनाना चाहता था अपने दिल का मैं,
मगर ज़िद है तुम्हारी तुमको चौकीदार बनना है
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ज़ुबाँ वश में नही तो बात को कहना भी सीखो,
उजाला चाहिए तो रात को सहना भी सीखो
मेरे महबूब के चेहरे से अपना रंग मिला बैठे
गुलाबों हद हुई औक़ात में रहना भी सीखो।
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प्यार है तो प्यार को कहते नहीं क्यों,
आप अपने आप में रहते नहीं क्यों ।
रात भर आकाश में क्या देखते हो ,
देखते हो देखकर थकते नही क्यों।
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कल न होंगे हम न मेरा प्यार होगा,
प्यार के दफ्तर में तब रविवार होगा,
चाय से झुलसेंगे दोनों होंठ तेरे,
सामने जब भोर का अखबार होगा,
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मुझसे मुंह मोड़कर तो चले जाओगे,
अपने दिल को भला कैसे समझाओगे,
तोड़ना ही है तो मेरा दिल तोड़िये,
आईने तोड़कर आप क्या पाओगे।
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फूल की चाह को हार ने सुन लिया,
नाव की राह पतवार ने सुन लिया,
कोई आवाज मेरी सुने ना सुने,
प्यार को प्यार से प्यार ने सुन लिया।

मंगलवार, 28 मई 2019

छन्द (घनाक्षरी)

(1)

राह है अलग भले मंज़िल है एक मेरी क्षमता है कम तेरी क्षमता विशेष है ।

राजस्थानी गोरी तेज़ तेरी है ज़ुबान मीठी मीठी बोली वाला मेरा उत्तर प्रदेश है ।

तोड़ तोड़कर फेंकती हो कई बार दिल टूट भी गया है और टूटना भी शेष है ।

और तोड़ने का मन हो तुम्हारा तो बताओ टूटा टूटा दिल फिर तोड़ने को पेश है।

(२)

लहर लहर लहराए ओढ़नी का छोर चोरनी चली गयी है लाखों दिल चोरकै,

गोरे गोरे गाल लाल लाल ऐसी लाल जैसे किरण उतर आयी नदिया में भोर कै

चली तो चली कि ऐसी चलती चली गयी यूँ लहर उठी लहर लहर हिलोर कै

नागिन शरम से हुई है पानी पानी और देंह जल गयी सारी मोरनी के मोर कै।

(३)

चित्र तो विचित्र है चरित्र राम जाने किन्तु मन हो गया पवित्र नयनों में देखकर,

धीरे धीरे नींद ने पवित्रता बढ़ाई और पलकें हुई पवित्र सपनों में देखकर ।

हो गया पवित्र जैसे किष्किन्धा सम्राट राम जैसा वीर योद्धा अपनों में देखकर 

जूठे बेर देके जैसे शबरी पवित्र हुई केवट पवित्र हुआ चरणों में देखकर।

(४)

पंख कटवाये गीधराज हो गये पवित्र रावण पवित्र हुआ राम जी के बैर से 

भरत पवित्र हुए राम के खड़ाऊँओं से हो गयी अहल्या श्रीराम जी के पैर से,

होना है पवित्र रामजी के काम में पधारो आस न उम्मीद करो और किसी ग़ैर से 

ख़ैर चाहते तो ख़ैर इतनी रहे कि ख़ैर सबकी रहेगी सदा राम जी की ख़ैर से ।

(५)

नैन अपने रखो हमारे नयनों से दूर वरना कहोगी मेरे नैन भरमा गये,

नाचेंगे इशारे पर नैन कजरारे मेरे नैन के इशारे यदि एक बार पा गये।

दिल से निकालने की कोशिश करोगे किन्तु ना निकाल पाओगे कहीं जो हम भा गये।

आना मत पास वरना न दूर जा सकोगी,दूर जाओगे लगेगा और पास आ गये।

(६)

जानना ही चाहती हो जान लो की जान था मै जानबूझकर अनजान ना बना करो।

मानों या न मानों कभी था तुम्हारा मेहमान मान दो न दो परन्तु अपमान ना करो।

ठोकर लगानी थी लगा चुकी हो जीवन में चोट कितनी लगी है अनुमान ना करो।

अनदेखा करो प्यार से किसी को देखना जो लगे एहसान तो ये एहसान न करो।

(७)

समय की बात है समय से चला मगर समय भी क्या करे  समय ख़राब हो 

समय है एक वृक्ष एक डाल किंतु एक ही जगह एक काँटा दूसरा गुलाब हो 

समय है एक ग्रंथ धूल फाँकता मिलेगा समय का एक पन्ना ही बड़ी किताब हो 

समय ज़रूर आएगा कभी न कभी जब प्यार का सवाल हो तो प्यार ही जवाब हो।


बुधवार, 1 मई 2019

जिन हवाओं में घुलेंगे गीत मेरे

जिन हवाओं में घुलेंगे गीत मेरे
उन हवाओं में नमी आ जाएगी,

पृष्ठ सब भीगे हुए हैं डायरी के,
शब्द सारी रात कल सोए नही हैं,
और काग़ज़ भीगकर दरिया हुआ है,
नयन तो इतना कभी रोए नहीं हैं।

लिखके सारा दर्द तो ना मिट सकेगा
पर दवाओं में कमी आ जाएगी ।

अर्थ पर हमने बहुत अंकुश रखा है,
जान पाओगे न तुम मेरी कहानी,
समझना चाहो तो बस इतना समझ लो,
आग मन की बह रही है बनके पानी।

प्यार में जलकर कभी देखो किसी के,
रात थोड़ी शबनमी आ जाएगी ।

ज़िंदगी का एक हिस्सा वेदना का,
एक हिस्सा मौत का उपहास है,
एक हिस्से में भरत को राजधानी
दूसरे में राम का वनवास है।

नभ में रहने वालों यह पैग़ाम सुन लो
पाँव तक एक दिन ज़मी आ जाएगी

प्रियान्शु गजेन्द्र