सोमवार, 4 नवंबर 2019

मेरे घर से दूर दूर ही गाओ चिड़ियों

मेरे घर को छोड़ दूर कुछ गाओ चिड़ियों,
मेरे घर कुछ अरमानों की मौत हुई है।

नागफनी उग आयी है दीवारों में 
आँगन में अंगारे चलना मुश्किल है,
सब खिड़की सारे दरवाज़े बंद करो 
मेरी छत अब चाँद निकलना मुश्किल है।

नयनों राह न देखो अब भीगी पलकों से 
सपनो के सब मेहमानों की मौत हुई है।
मेरे घर को ............................,।

भोर हवाओं का घुस आना वर्जित है 
वर्जित है सूरज की किरणों का आना।
मेरे घर में केवल तनहाई बोलेगी या,
सदियों तक बोलेगा ख़ाली पैमाना ।

प्यासे होंठों मुझसे  अब एक बूँद न माँगो 
मेरे मन के मयखानों की मौत हुई है ।
मेरे घर को ............................,।

दरिया को घमंड वह पानी पानी तो,
अधरों को है गर्व कि वह एक प्यासा है,
पत्थर समझ रहा है ख़ुद को ईश्वर तो,
वह कम है क्या जिसने उसे तराशा है।

नहीं झुकाऊंगा अब यह सर उनके आगे,
मन में जिनके सम्मानों की मौत हुई है।
मेर घर  को ............................,।

शुक्रवार, 1 नवंबर 2019

शाख से उतरा हुआ इक फूल हूं मै

शाख़ से उतरा हुआ इक फ़ूल हूँ मैं,
कौन सुनता है मेरे मन की व्यथाएँ,
लोग मुझसे हाल तेरा पूछते हैं,
तुम कहो लोगों से हम क्या-क्या बताएँ।

बाग़ के सब भ्रमर मुझसे पूछते हैं ,
अनगिनत वे सफ़र मुझसे पूछते हैं,
प्यास पहले मरी या पानी मरा था,
नदी नाले नहर मुझसे पूँछते हैं ।

पहले खारा सिन्धु था या नदी खारी
उफनती लहरों से हम क्या क्या बताएँ।
शाख़ से उतरा हुआ ......................।

क्या बताएँ राजपथ तुमने चुने हैं,
या कि तुमने स्वप्न सब ऊँचे बुने हैं
या की कह दूँ स्वर्ण मंडित कुंडलों में 
बोल पीतल के हमारे अनसुने हैं।

शोर के आगे हुए हैं गीत बौने,
काँपते अधरों से हम क्या क्या बताएँ।
शाख़ से उतरा हुआ ......................।

एक चिड़िया गुनगुनाना चाहती है 
मेरे स्वर में स्वर मिलाना चाहती है 
ज़िंदगी कहती है दुनिया जीत लेना,
मौत मिट्टी में मिलाना चाहती है ।

जिंदगी बढ़ती है ज्यो ज्यों सांस घटती
उमड़ते सपनों से हम क्या क्या बताएँ।
शाख़ से उतरा हुआ ......................।

प्रियांशु गजेन्द्र