सोमवार, 20 सितंबर 2021

एक दिन तो

एक दिन तो अलग हमको होना ही है,
कल जो होना है वह आज ही से सही,
दुःख रहेगा तो बस एक ही बात का,
बात सारी रही अनसुनी अनकही।

इस चमन में कहाँ फ़ूल इतने खिले,
हर भ्रमर की जहां पूर्ण हो साधना।
हर नयन में लिखी प्राप्ति की लालसा,
हर अधर पर लिखी प्यास की याचना।

इस तरह से रहा प्यार तेरा भ्रमर,
जब रहा तब रहा अब नही तो नही।

तुम भी फूलो फलो हम भी फूलें फ़लें
ज़िन्दगी उस विधाता का उपहार है,
वह किसी को भला दे सकेगा तो क्या
अपने ऊपर नही जिसका अधिकार है,

प्यार के पन्थ में क्या  सही क्या ग़लत,
जो ग़लत वह ग़लत जो सही वह सही।

हम मुसाफ़िर हैं इस रात की भोर तक,
एक सूरज सुबह हमको ले जाएगा,
वाष्प की बूँद ने  ने यूँ कहा फ़ूल से,
इक नयी बूँद फिर चाँद दे जाएगा,

इस तरह से चली बूँद की ज़िन्दगी,
जब जमी तब जमी जब बही तब बही।

गुरुवार, 16 सितंबर 2021

कृष्ण वियोग

१ 
श्याम गए तो गए मथुरा मथुरा न गयी वृषभानु दुलारी,
कौन सी आन रही मन में वह आन गयी मन से न उतारी,
जाकर हाल न पूँछ सकी किस हाल में है ब्रजधाम बिहारी,
प्यार के बन्धन बांध हमें किस बांध में जाके बँधे बनवारी।
पन्द्रह ही दिन बोल गए इक मास हुए पर लौट ना आए,
भेजती कोई कबूतर जो कि सन्देश यहाँ से वहाँ पहुँचाए,
कौन कमी रही प्यार में जो यदुनंदन प्यार की रीति भुलाए
जो सबको भरमा गये हैं उनको भला कौन वहाँ भरमाए।
कोई नही दिन बीतता है मनमोहन को जब याद ना आए,
काग मयूर बया बगुले बस देखते हैं किस ओर से आए,
आए जो हैं ब्रजभूमि से तो अभी राधिका की छवि देखके आए,
देख उन्हें मन नाच उठे मानो राधिका को ख़ुद देखके आए।

फूल खिले भँवरे लिपटे मकरंद भरी बगिया महकाये,
सावन के दिन भाद्र की रात आषाढ़ की दोपहरी जब आये,
धीर धरो कितना भी भले मन पे पर धीर धरा नहि जाए,
कोई कहीं से नही कहता चलो राधिका है वहाँ नैन बिछाये।
गोकुल के बछड़े बछड़ी बस व्याकुल हैं मथुरा नहि आये,
वृक्ष कदम्ब के वैसे खड़े न झुके न गिरे न खिले मुरझाये,
मौन खड़े गिरिराज वहीं यमुना उसी ओर ही नीर बहाये
भूल गए ब्रज वासी ही या ब्रजवासियों को घनश्याम भुलाये।
राधिका का उन्माद चढ़ा अब और कोई उन्माद नहीं है
राधिका हो न हो राधिका के प्रति मानस में दुर्वाद नही है
राधिका से पहले नहि था कुछ राधिका के कुछ बाद नहीं है ,
याद में राधिका है इतना बिन राधिका के कुछ याद नहीं है,
श्याम बिना नहीं राधिका तो बिन राधिका स्याम नहीं रह पाते,
श्याम में राधा नही रहती यदि श्याम वियोग नहीं सह पाते,
वृक्ष नदी तट पे रहते जलधार के साथ नहीं बह पाते।
भीतर भीतर पीर भरे पर पीर किसी से नहीं कह पाते।
आदि व अन्त अनंत में राधिका मध्य में राधिका की छवि छायी,
अर्ध्य व ऊर्ध्य प्रत्यक्ष अप्रत्यक्ष दिशा विदिशा में वही है समायी,
जीत में हार में लाभ में हानि में राधिका राधिका ही दे  दिखायी,
नैन ही राधिका में जा बसे या कि राधिका ही हर ओर से आयी।
फूल कदम्ब के फूल उठे या कि राधिका फूल के फूल हुई है,
है ऋतुराज अनंग प्रसन्न की ये ऋतु ही अनुकूल हुई है।
पाँव रखे जिस ओर जहां उस ओर की चंदन धूल हुई है,
भूल गयी मुझे राधिका या मुझसे ही कोई बड़ी भूल हुई है।

ग़ज़ल

कहानी 
कहानी कुछ बनायी जा रही थी,
कहानी कुछ सुनायी जा रही थी,

खड़ा था दिल के दरवाज़े पे मै पर,
मुझे खिड़की दिखायी जा रही थी।

मै लिखना चाहता था छंद लेकिन,
मुझे ग़ज़लें लिखाई जा रही थी।

जिसे पीना था नयनों का अमिय रस,
उसे मदिरा पिलायी जा रही थी।

बुझाने आग निकला जब शहर की,
मेरी बस्ती जलायी जा जा रही थी।

जहाँ मैं ज़िन्दगी लेने गया था,
वहाँ अर्थी उठायी जा रही थी।