शुक्रवार, 20 दिसंबर 2019

पांव में पीर उठती रही

पाँव में पीर उठती रही पर उंगलियों में दवा दी गयी,
आग जब भी लगी मेरे घर में खिड़कियों से हवा दी गयी

वक़्त नाज़ुक है हालात नाज़ुक,
उनसे मत आसरा कीजिएगा,
हाथ में जो उठाए हैं पत्थर,
उनसे क्या मशवरा कीजिएगा?

मेरी आवाज़ थी बस मोहब्बत सिसकियों में दबा दी गयी
आग जब जब ...............................................।

हो रहे लोग अपने पराए,
फ़ूल मधुमास में मर रहे हैं।
जो है करना नही कर रहे क्यों
जो न करना है वह कर रहे हैं।

आग झुलसी किताबों से लाकर बस्तियों में लगा दी गयी।
आग जब जब ...............................................।

तुम भी हिन्दू मुसलमान हो क्या,
पढ़ न पाए जो दिल की कहानी,
एक जम जम की ख़ातिर लड़ा तो 
दूसरा लड़ गया कहके पानी।

जल तो जल है मेरी बात लेकिन चिट्ठियों में छुपा दी गयी ।
आग जब जब ...........................................।

प्रियांशु गजेन्द्र

शुक्रवार, 13 दिसंबर 2019

किस कहानी में खोए हुए थेके

किसका किरदार हम पढ़ रहे थे,
किस कहानी में खोए थे ?
नैन इतने भी मासूम थे क्या,
जिनके पानी में खोए हुए थे?

वे नशीले नयन और होंगे,
जिनमे ढलते हैं हर रात प्याले 
बाँह भी और ही होगी अब जो,
उम्र भर की थकन को सम्हाले।
ऐसी मिलती कहां अब कलाई
प्यार के जिनमें कंगन खनकते,
प्यार भी प्यार ही रह गया क्या 
कर रहे जब से व्यापार वाले?

कातिलों के निशाने पे थे पर,
हम निशानी में खोए हुए थे।

तुमको देनी थी जो दे न पाया,
चिट्ठियां आज वे सब जला दी,
देने वाले की शायद कमी थी,
मुझको चाहत मुझे ही वफा दी।
प्यार मैंने निभाया तो ऐसे,
वैसे ईश्वर न कोई निभाए।
खुद का अपराध खुद की अदालत
खुद गवाही दी खुद को सजा दी,

उम्र से पहले आया बुढ़ापा,
हम जवानी में खोए हुए थे,

पांव पत्थर जहां छील देते ,
फायदा क्या चलें उस डगर पर।
मन है ख़ाली हुई जेब ख़ाली
बोझ हूं अब तुम्हारे शहर पर,
दोष सागर का कोई नहीं था,
ना ही पतवार थी इसमें दोषी।
नाव को एक दिन डूबना है,
जब नियंत्रण न हो हर लहर पर,

तट पे तूफान आया था तब हम,
राजधानी में खोए हुए थे।