पाँव में पीर उठती रही पर उंगलियों में दवा दी गयी,
आग जब भी लगी मेरे घर में खिड़कियों से हवा दी गयी
वक़्त नाज़ुक है हालात नाज़ुक,
उनसे मत आसरा कीजिएगा,
हाथ में जो उठाए हैं पत्थर,
उनसे क्या मशवरा कीजिएगा?
मेरी आवाज़ थी बस मोहब्बत सिसकियों में दबा दी गयी
आग जब जब ...............................................।
हो रहे लोग अपने पराए,
फ़ूल मधुमास में मर रहे हैं।
जो है करना नही कर रहे क्यों
जो न करना है वह कर रहे हैं।
आग झुलसी किताबों से लाकर बस्तियों में लगा दी गयी।
आग जब जब ...............................................।
तुम भी हिन्दू मुसलमान हो क्या,
पढ़ न पाए जो दिल की कहानी,
एक जम जम की ख़ातिर लड़ा तो
दूसरा लड़ गया कहके पानी।
जल तो जल है मेरी बात लेकिन चिट्ठियों में छुपा दी गयी ।
आग जब जब ...........................................।
प्रियांशु गजेन्द्र
भैया 💓💓💓प्यार हैं आप
जवाब देंहटाएंबहुत खूब भैया जी
जवाब देंहटाएंgjab sir supar
जवाब देंहटाएंgjab sir supar
जवाब देंहटाएंBahot sundar geet hai
जवाब देंहटाएं.....mai bhi kavita likhta hu...Bhet de...
Bahut hi sundar kavita
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