बुधवार, 4 जनवरी 2017

फक्कड़ हूँ मनमौजी मैं कविताएं लिखता हूँ


कहते हैं कुछ लोग मुझे यह निरा निकम्मा कायर है
कुछ कहते हैं पागल है तो कुछ कहते हैं शायर है

मैं आवारा कलम का मारा सपनों का सौदागर हूँ
दुनिया में विखराता मोती पर मैं रीती गागर हूँ
             पत्थर के सीनें पर अमर कथाएं लिखता हूँ
             फक्कड़ हूँ मनमौजी मैं कविताएं लिखता हूँ

लिखता हूँ मैं उनके आंसू जिनका नहीं कोई अपना
लंबी लंबी रातों को तड़पाता है जिनको सपना
जिनके दिलवर दिल में ही रहकर दिल को ही तोड़ गए
जो अपनों की जीवन नौका बीच भंवर में छोड़ गए
          उन घायल प्राणों को लाख दुवाएं लिखता हूँ
          फक्कड़ हूँ...............।

फटे हुए कुर्ते में गर्मी बीती वर्षा शीत गया
पुस्तैनी ऋण भरनें में ही जिसका जीवन बीत गया
भारत का भविष्य रचने में जिसका मरना जीना है
एक एक दानें में शामिल जिसका खून पसीना है
         उस किसान को शीतल मंद हवाएँ लिखता हूँ
          फक्कड़ हूँ..........................।

लिखता हूँ उस माँ की खातिर जिसने बेटा दान किया
कलम रखूं उसके चरणों में भाई का वलिदान दिया
जिसने दे डाला सिन्दूर देश को विधवा हुई जवानी में
अक्षर अक्षर मैं धो करके गंगा जी के पानी में
              उस देवी के लिए शब्द मालाएं लिखता हूँ
               फक्कड़ हूँ.....................................।