घनाक्षरी
हम हैं अनाड़ी और प्यार की कठिन राह,
दुनिया के दांव पेंच हम नहीं जानते।
दिन को कहो जो रात रात लगती है दिन,
रात को कहो जो दिन दिन हम मानते।
स्याही को सफेदी करो या सफेदी स्याही किन्तु,
हम तो तुम्हारा एक रंग पहचानते,
मेरे प्यार को भले कहो कि नाटक है,
किन्तु तेरा नाटक भी हम प्यार मानते
भोले भाले प्यार के पथिक हम गांव वाले,
जानते नहीं कि कौन अपना पराया है।
चलते रहे सदैव राह जो दिखाई तूने,
देखा ही नही कि कहाँ धूप कहाँ छाया है। जीवन फंसा हुआ है रूप जाल में तुम्हारे ,
रूप है कि रूपसी तुम्हारी कोई माया है। चाँद मेरे घर आये तो लगा कि तुम आई,
तुम घर आई तो लगा कि चाँद आया है।
चुनरी ध्वजा सी लहरा रही है अम्बर में,
नयनों में तीर व कटार लेके आयी हो,
भौंह है कमान व कमान पे चढ़ा है बाण,
अधरों पे लोहित अंगार लेके आई हो,
कामदेव की उपासना का परिणाम हो कि,
रति हो कि कोई अवतार लेके आई हो,
मेरे मन का अभेद्य दुर्ग जीतने का कोई,
शस्त्र हो या कोई शस्त्रागार लेके आई हो।
चंचल नयन से अचंचल हुआ है मन,
चंचला नयन से नयन भरमाओ ना।
मन है अधीर हुआ घायल शरीर मार,
नयनों के तीर इसे और तड़पाओ ना
आओ तो चली ही आओ जाओ तो चली ही जाओ,
जाकर न आओ या तो आकरके जाओ ना।
आग लेके आओ या तो पानी लेके आओ आग
पानी दोनों लेके आग पानी में लगाओ ना।
अपनी पे आ गया तो आँख ना मिला सकोगी,
आँख जो मिलेगी तो मिलाई नही जायेगी।
पुतरी फिरेगी नही पलक गिरेगी नही,
गिर भी गयी कहीं उठायी नही जायेगी।
आंख आंख से मिली तो आंख आंख न रहेगी,
आंख फिर आंख से हटाई नही जायेगी।
आँख से हुई जो बात बात ना रहेगी बात
बात ऐसी होगी कि बतायी नही जायेगी।
देखना ही चाहती हो भरके नयन देखो,
चोरी चोरी देखना भी कोई देखना हुआ।
फेंकनें का हो इरादा दिल से उतार फेंको,
चिट्ठियों को फेंकना भी कोई फेंकना हुआ।
ऊँगली में ऐसे न लपेटो ओढ़नी का छोर,
ऐसे ही लपेटना भी क्या लपेटना हुआ।
दूर दूर से निबाह बांह में फंसी न बांह,
ऐसी भेंट हो भी तो क्या कोई भेंटना हुआ