मंगलवार, 23 अगस्त 2016

सिसकियाँ कह गयी

    मुक्तक
होंठ खामोश थे सिसकियाँ कह गयी
 द्वार तो बंद थे खिड़कियां कह गयी
 कुछ नयन ने कहा नींद ने कुछ कहा
जो बचा था उसे हिचकियाँ कह गयी
                     (2)
कंगनों ने कहा चूड़ियाँ कह गयी
 कुछ अंगूठी तो कुछ उँगलियाँ कह गयी
 एक मीरा की दीवानगी की कथा
मंदिरों में बंधी घंटियां कह गयी
                       (3)
मैंनें हंसकरके तुम रूठकर कह गयी
 मैं बंधा और तुम छूटकर कह गयी
राधिका ने कहा था जो घनश्याम से
उसको मीरा जहर घूँटकर कह गयी
                       (4)
चाँद चलकर धरा घूमकर कह गयी
बावरी निर्झरा झूमकर कह गयी
जो कि ब्रम्हा नहीं कह सके वेद में
वह अहिल्या चरण चूमकर कह गयी