मुक्तक
होंठ खामोश थे सिसकियाँ कह गयी
द्वार तो बंद थे खिड़कियां कह गयी
कुछ नयन ने कहा नींद ने कुछ कहा
जो बचा था उसे हिचकियाँ कह गयी
(2)
कंगनों ने कहा चूड़ियाँ कह गयी
कुछ अंगूठी तो कुछ उँगलियाँ कह गयी
एक मीरा की दीवानगी की कथा
मंदिरों में बंधी घंटियां कह गयी
(3)
मैंनें हंसकरके तुम रूठकर कह गयी
मैं बंधा और तुम छूटकर कह गयी
राधिका ने कहा था जो घनश्याम से
उसको मीरा जहर घूँटकर कह गयी
(4)
चाँद चलकर धरा घूमकर कह गयी
बावरी निर्झरा झूमकर कह गयी
जो कि ब्रम्हा नहीं कह सके वेद में
वह अहिल्या चरण चूमकर कह गयी
होंठ खामोश थे सिसकियाँ कह गयी
द्वार तो बंद थे खिड़कियां कह गयी
कुछ नयन ने कहा नींद ने कुछ कहा
जो बचा था उसे हिचकियाँ कह गयी
(2)
कंगनों ने कहा चूड़ियाँ कह गयी
कुछ अंगूठी तो कुछ उँगलियाँ कह गयी
एक मीरा की दीवानगी की कथा
मंदिरों में बंधी घंटियां कह गयी
(3)
मैंनें हंसकरके तुम रूठकर कह गयी
मैं बंधा और तुम छूटकर कह गयी
राधिका ने कहा था जो घनश्याम से
उसको मीरा जहर घूँटकर कह गयी
(4)
चाँद चलकर धरा घूमकर कह गयी
बावरी निर्झरा झूमकर कह गयी
जो कि ब्रम्हा नहीं कह सके वेद में
वह अहिल्या चरण चूमकर कह गयी