अपनेपन से कहो
जो है कहना तुम्हें,अपनेपन से कहो
मै चला जाऊँगा ज़िंदगी से तुम्हारी तुम्हारी क़सम
अपनेपन से कहो,
पृष्ठ होकर भी हम हाशिए पर रहे,
तुमने पढ़ने से पहले किनारा किया,
तुममें जो था तुम्हारा तुम्हारा रहा,
मुझमे जो था हमारा तुम्हारा किया,
अपने पन से कहो
याद सारी जला दूँ अभी से तुम्हारी तुम्हारी क़सम,
अपने पन से कहो।
लौट बादल गए फिर से बरसे बिना,
हम थे सावन का उत्सव मानते रहे।
नींद आयी जो नयनों के अधिकार में,
रात भर स्वप्न के शव उठाते रहे ।
अपने पन से कहो
मोड़ जाऊँगा मुँह आशिक़ी से तुम्हारी,तुम्हारी क़सम।
अपने पन से कहो।
चोट पर चोट लगते हुए एक दिन,
दर्द में डूबकर दर्द मर जाएगा।
चोट दे करके तब हार जाओगे तुम,
वक़्त जब भी मेरा घाव भर जाएगा।
अपने पन से कहो।
जीत जाऊँगा मै दिल्लगी से तुम्हारी तुम्हारी क़सम
अपनेपन से कहो।
प्रियांशु गजेन्द्र 27 अगस्त 20121