शनिवार, 10 दिसंबर 2016

हम हैं राही प्यार भरे बाज़ारों के

मेरे मन का कर लो मोल;
कीमत ढाई आखर बोल;
कब मोहताज रहे हैं राजदरबारों के,
हम हैं राही प्यार भरे बाजारों के,

सुनता हूँ वे लोग बड़े हैं,जो गीता और वेद पढ़े हैं,
हमने पूरी रामायण में शबरी के दो बेर पढ़े हैं।
जीवन में उनका रस घोल,
निकले हैं रचने भूगोल,
फूल लिखेंगे माथे पर अंगारों के ,
हम हैं राही...............
पतझारों में घटा ढूंढने,पत्थर में आस्था ढूंढने,
दो मुट्ठी लेकरके चावल निकले हम द्वारिका ढूंढने,
राहें सीधी हों या गोल,
आएं तो आएं भूडोल,
जाना है हमको उस पार सितारों के,
हम हैं राही................

जीवन की हर रात ख़रीदो अधरों की हर बात ख़रीदो,
मै अपनी सब उमर बेंच दूँ तुम यदि मेरा साथ ख़रीदो,
पल-पल जीवन है अनमोल,
वक्त रहा है सांसे तोल
डोली होगी एक दिन बिना कंहारो के
हम हैं राही प्यार---------------------------

अवधी गीत

आज गौरीगंज अमेठी में होगी अवधी कविता आप भी पढ़ें एक नव गीत
****गीत*****
तुम्हरे रूप कै रतन
कौने खेत कै किसानी
   जैसे आग मइहाँ पानी
                  या कि चन्दा कै निसानी
                          या कि मूढ़ कै सपन
तुम्हरे रूप कै रतन
         बिहँसे डोलै पुरवइया,
         चाल हिरनी के समइया
          झाकै दरपने मा जइसै
          झाँकै ताल मा जोंधइया
सुन ले रूप केरि रानी
बनिकै थोरी देर दानी
दइदे प्यार कै निसानी
घुंघटा खोलि दे अपन
तुम्हरे रूप कै .............

             मनवा घुमै बाउर-बाउर,
             जैसै थारी मइहां चाउर,
             रंग ले हमका अपने रंग मा
             करिले पांव कै महाउर
सुनिले ब्रज की राधा रानी,
भै पिरितिया अब सयानी      
लइकै जमुना जी कै पानी
कहिदे तुमही हौ सजन
तुम्हरे................
अंगिया द्य्याहैं बाबा भोले
कंगना छोटे या मंझोले
गहना गरुए सब गढउबै
गिनबै नाही माशा तोले
        सुख से रहबै दूनौ प्रानी
        छउबै घर कै छप्पर छानी
         कहबै प्यार कै कहानी
         देखबै प्यार कै सपन
तुम्हरे रूप..................

ग़ज़ल

वो एक सपना दिखा रहे हैं या मुझको अपना बना रहे है
खड़े खड़े मुस्कुरा रहे हैं न आ रहे हैं न जा रहे हैं

नज़र से मेरी नजर मिलाकरके झूठ मुझसे न कह सकोगे
चलो तुम्हारा ह्रदय न टूटे हम अपना चेहरा छुपा रहे हैं

तुम्हें अगर तोडना ही है ये हमारा  शीशे का दिल तो बैठो
कहाँ भटकते फिरोगे आओ यहीं पे पत्थर मंगा रहे हैं

बदलके देखे हैं चाँद तारे न अच्छे दिन हैं न अच्छी रातें
ईमान दारी से कह रहा हूँ जो खा रहे थे वो खा रहे हैं      

किया था वादा किसी से हमने न याद आऊँ न आने दूंगा
उसे निभाने के हर जतन में न रो रहे हैं न गा रहे हैं ।

      प्रियांशु गजेन्द्र

संसार लेकर क्या करूँगा

शाख पर फिर फूल आये,
वन बगीचे मुस्कुराये।
पर नयन बिन रूप का  बाजार लेकर क्या करूँगा।
तुम न हो पाये मेरे संसार लेकर क्या करूँगा।

यह कहानी प्यास की है ,
प्यार में विश्वास की है।
जो कभी मिल न पाये ,
उस धरा-आकाश की है।
हार फूलों का उठाये,
           कदम तो तुमने बढ़ाये।
पर लगन बिन देह पर अधिकार लेकर क्या करूँगा।

साँस सांसो में भिड़ी है,
जंग जीवन में छिड़ी है
चाह में एक राधिका ,
बाँहो में लेकिन रुक्मणी है।
हाथ में मेंहदी लगाये,
           दुल्हन घूँघट में लजाये।
पर मिलन बिन सेज़ पर श्रृंगार लेकर क्या करूँगा।

ह्रदय भर कर पीर लेकर ,
स्वप्न की जागीर लेकर।।
हैं मुझे सोने की आदत ,
हाथ में तस्वीर लेकर।
झूमती पुरवा हवाएँ,
          कसक तो मन में उठाये।
पर गगन बिन पंख का बिस्तार लेकर क्या करूँगा।
तुम न हो पाये मेरे संसार लेकर क्या करूँगा।।।।।

प्रियांशु गजेन्द्र।।।।

इन अधरों को तुमसे आशा है

इस पनघट से उस पनघट तक 
घूमा घट से गंगा तट तक 
मन का मुसाफिर फिर भी प्यासा है ,
इन अधरों को तुमसे आशा है
मयखाने की ओर ना देखूँ नीलगगन का छोर न देखूँ 
तुम यदि मेरी ओर देख लो मै दुनिया की ओर न देखूँ
इन नयनों को उन नयनों से 
इन सपनो को उन सपनों से 
सदियों लम्बी एक दिलाशा  है
इन अधरों .....................
मंदिर से क्या चाह सुनाऊं मस्जिद की क्या थाह लगाऊं 
तुम मेरे हमराह बनो तो मै जन्नत की राह न जाऊं 
गुरूद्वारे से गिरजाघर तक 
इस धरती से उस अम्बर तक 
बोल रहे खग प्यार की भाषा है
इन अधरों.............................
पत्थर भी यदि हँसते रोते हम इतने अनमोल न होते 
अक्षर मिटटी मोल न होते प्यार के दो यदि बोल न होते
पंखुरियों के द्वार खोल दो
मेरे लिए इक बार बोल दो 
प्रियतम की प्रिय से अभिलाषा है 
इन अधरों............................

अभिशापित है राम

युग युग का संकल्प अटल था

मुझमे मेरा राम प्रबल था
पग-पग पर जग की मर्यादा
देकर थोडा ले गयी ज्यादा
भोर नयन भर लायी आंसू, पीड़ा लायी शाम,
सिया तेरा अभिशापित है राम
अग्नि परीक्षा जग का छल थी
पर जग के प्रश्नों का हल थी
फिर भी उस पर प्रश्न उठा है
जो गंगा जैसी निर्मल थी
मैंने घर से उसे निकाला
सागर जिसके लिए खंगाला
लंका जीतने वाला हार जीवन का संग्राम
सिया तेरा अभिशापित.......
बोल रहा पौरुष की भाषा
मेरा राजकुंवर नन्हा सा
जो प्राणों से भी प्यारा है
आज वही प्राणों का प्यासा
मेरा साहस तोल रहा है
मानों मुझसे बोल रहा है
जननी की हर एक पीड़ा का पाओगे परिणाम
सिया तेरा अभिशापित.........
तात मुझे करके वनवासी
आप हुए गोलोक निवासी
मेरे राजकुंवर कुटिया में
मैं हूँ राजभवन का वासी
कहती रघुकुल रीति अभागे
अब तक प्राण नहीं क्यूँ त्यागे
धरती शायद ठुकरा देगी जल में चिर विश्राम
सिया तेरा अभिशापित है राम

शुक्रवार, 9 दिसंबर 2016

नयन का नशा है

भ्रमर के ह्रदय में सुमन का नशा है,
सुमन को भ्रमर के छुवन का नशा है
छुवन का नशा है नशीले नयन को
मुझे उस नशीले नयन का नशा है।

नयन को नयन से नयन का नशा है,
जलन बढ़ रही है जलन का नशा है,
जलन को नशा है किसी बावरी का,
उसी बावरी से मिलन का नशा है।

लगन लग गयी है लगन का नशा है,
लगन में भजन है भजन का नशा है,
नशा क्या करेगा उसे विष का प्याला,
जिसे श्याम जैसे सजन का नशा है।

घटाओं को ऊँचे गगन का नशा है,
गगन को धरा की तपन का नशा है
बहुत उड़ चुके हो कहीं थम भी जाओ
बहुत ऊँचे उड़ना पतन का नशा है।

चपल चांदनी को किरण का नशा है,
किरण को सुवर्णाभरण का नशा है,
तपाया गया है उसी जानकी को,
जिसे वन के स्वर्णिम हिरन का नशा है।

ढली धूप को अब तपन का नशा है,
थकी आँधियों को थकन का नशा है,
तुम्हे है नशा पाजी आतंकियों का,
मेरे देश को भी कफ़न का नशा है।

उसे शीघ्रता से मरण का नशा है,
जिसे वासना में तरण का नशा है,
बहुत शीघ्र जल जाती है उसकी लंका,
जिसे जानकी के हरण नशा है।

रंग दे चुनरिया मेरे देश की

कोई आये रे।
रंग दे चुनरिया
            लाल धानी या केसरिया
                             मेरे देश की।
धरती नभ् की पिचकारी से रंग फिसलकर आए
इस बबूल के वन से भी मकरंद पिघलकर आए
ऐसा फागुन आये अबकी काँटों की सूरत बदले
जे एन यू से कोई विवेकानंद निकलकर आये
और गाये रे
सोने की चिरैय्या
           होगी फिर से धरती मैया
                                    मेरे देश की।
कहीं पे रंग दे भगवद्गीता कहीं-कहीं गुरुवाणी,
कहीं पे रंग दे नटवर नागर कहीं पे राधा रानी,
कोई रंग बना दे मौला एक रंग जग रंग जाये,
रंग-रंग जैसा हो जाये पानी जैसा पानी।
मुस्कुराये रे फूल पे तितिलिया
                गाये डाल पे कोयलिया।
                                  मेरे देश की।

चाँद घर आया है।

                        घनाक्षरी
हम हैं अनाड़ी और प्यार की कठिन राह,
               दुनिया के दांव पेंच हम नहीं जानते।
दिन को कहो जो रात रात लगती है दिन,
                रात को कहो जो दिन दिन हम मानते।
स्याही को सफेदी करो या सफेदी स्याही किन्तु,
                हम तो तुम्हारा एक रंग पहचानते,
मेरे प्यार को भले कहो कि नाटक है,
                किन्तु तेरा नाटक भी हम प्यार मानते

                 
भोले भाले प्यार के पथिक हम गांव वाले,
                 जानते नहीं कि कौन अपना पराया है।
चलते रहे सदैव राह जो दिखाई तूने,
                 देखा ही नही कि कहाँ धूप कहाँ छाया है। जीवन फंसा हुआ है रूप जाल में तुम्हारे ,
                 रूप है कि रूपसी तुम्हारी कोई माया है। चाँद मेरे घर आये तो लगा कि तुम आई,
                  तुम घर आई तो लगा कि चाँद आया है।

चुनरी ध्वजा सी लहरा रही है अम्बर में,

नयनों में तीर व कटार लेके आयी हो,

भौंह है कमान व कमान पे चढ़ा है बाण,

अधरों पे लोहित अंगार लेके आई हो,

कामदेव की उपासना का परिणाम हो कि,

रति हो कि कोई अवतार लेके आई हो,

मेरे मन का अभेद्य दुर्ग जीतने का कोई,

शस्त्र हो या कोई शस्त्रागार लेके आई हो।


चंचल नयन से अचंचल हुआ है मन,

चंचला नयन से नयन भरमाओ ना।

मन है अधीर हुआ घायल शरीर मार,

नयनों के तीर इसे और तड़पाओ ना

आओ तो चली ही आओ जाओ तो चली ही जाओ,

जाकर न आओ या तो आकरके जाओ ना।

आग लेके आओ या तो पानी लेके आओ  आग

पानी दोनों लेके आग पानी में लगाओ ना।


अपनी पे आ गया तो आँख ना मिला सकोगी,

आँख जो मिलेगी तो मिलाई नही जायेगी।

पुतरी फिरेगी नही पलक गिरेगी नही,

गिर भी गयी कहीं उठायी नही जायेगी।

आंख आंख से मिली तो आंख आंख न रहेगी,

आंख फिर आंख से हटाई नही जायेगी।

आँख से हुई जो बात बात ना रहेगी बात

बात ऐसी होगी कि बतायी नही जायेगी।


देखना ही चाहती हो भरके नयन देखो,

चोरी चोरी देखना भी कोई देखना हुआ।

फेंकनें का हो इरादा दिल से उतार फेंको,

चिट्ठियों को फेंकना भी कोई फेंकना हुआ।

ऊँगली में  ऐसे न लपेटो ओढ़नी का छोर,

ऐसे ही लपेटना भी क्या लपेटना हुआ।

दूर दूर से निबाह  बांह में फंसी न बांह,

ऐसी भेंट हो भी  तो क्या कोई भेंटना हुआ




आपकी बाँहों में आना चाहता

**********× गीत ×**********

आपकी बाँहों में आना चाहता हूँ
द्वार सावन की झड़ी है,
यह मिलन की शुभ घडी है,
और एक दीवार अपने बीच बरसों से खड़ी है,
मैं इसे तत्क्षण गिराना चाहता हूँ
आपकी बाँहों में....................
जानता हूँ कंटकों के बीच है बगिया तुम्हारी।
फूल चुनने में उजड़ जायेगी यह दुनिया हमारी।
मौत मुंह बाए खड़ी है,
प्रीति पर उससे बड़ी है,
पत्थरों से खेलने वाले तुझे किसकी पड़ी है।
आ इधर मै चोट खाना चाहता हूँ,
आपकी--------------
पांव का कर लो महावर रंग हूँ धुंधला रहा हूँ
होंठ से छू लो मुझे मै फूल हूँ कुम्हला रहा हूँ
जिंदगी इतनी बड़ी है
प्यार जिसमे दो घड़ी है
देंह अपराधिनि हमारी बांह तेरी हथकड़ी है।
कैद कर ले मुक्ति पाना चाहता हूँ
आपकी बाँहों............
फूल चुन ले बाग़ से तू देख पतझर आ न जाए
रोक ले ओ राधिके मोहन तेरा मथुरा न जाए
दूर तू इतनी खड़ी है,
मन में व्याकुलता बढ़ी है,
मौन हैं कंगन तुम्हारे शांत बिछुए की लड़ी है।
दूर रहकर पास आना चाहता हूँ।
आपकी...........:-O..
प्रियांशु गजेन्द्र
बाराबंकी
9415587799

हिन्दुस्तान नही

🇮🇳🇮🇳 एक गीत उन राष्ट्रों को समर्पित जो चंद्रमां पर जाकर गर्व् कर रहे हैं 🇮🇳🇮🇳

देखा होगा चाँद मगर भारत सा ज्योतिर्मान नहीं
देखा भी तो क्या देखा यदि देखा हिन्दुस्तान नहीं
जहाँ गार्गी लोपामुद्रा सावित्री व सीता हैं
कंठ कंठ में रामायण हर दिल में बसती गीता है
जहाँ दिलों में गूँज रही अब्दुल अशफ़ाक़ की गाथाएं
तिलक लगाकर जहाँ भेजती रण में बेटे माताएं
कहीं पद्मिनी जौहर करती लक्ष्मी का बलिदान कहीं
देखा भी..............
जहाँ हिमालय चढ़ा तिरंगा गौरव पर इतराता है
शौर्य शांति सुख व समृद्धि का अनुपम गीत सुनाता है
ताजमहल सा भाव भरा संसार कहाँ मिल सकता है
मुनि दधीचि का जनहित में कंकाल कहाँ मिल सकता है
पत्थर मिल सकता दुनिया में पर उसमे भगवान् नहीं
देखा भी तो ..............
प्यार और भाई चारा से महक रही डाली डाली
विश्व विजेता भी भारत से आकर लौट गया खाली
फैलाता आतंक यहाँ जो कायर नीरा अभागा है
प्यार यहाँ पिस्तौल नहीं रेशम का कच्चा धागा है
नफरत की दुनिया में प्यारे पलते ना रसखान कहीं
देखा भी..........
पाकिस्तानी चीनी अफगानी जापानी आते हैं देख देख वन उपवन वापी मन ही मन ललचाते हैं
कश्मीरी शालें मलमल रेशम की साड़ी कहाँ रखी
रुनझुन रुनझुन करती ये बैलों की गाडी कहाँ रखी
सौ चक्कर मारो दुनिया के है ऐसा स्थान नहीं
देखा भी........
प्रियांशु गजेन्द्र बाराबंकी🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳

चित्रण मेरे पास नही है

नयनों को लिखता मधु शाला 
चितवन को मधु रस का प्याला
लेकिन जैसा रूप तुम्हारा दर्शन मेरे पास नहीं है।
जैसा चित्र तुम्हारा वैसा चित्रण मेरे पास नहीं है ।

तुमको गीत ग़ज़ल लिख देता
   या तो नील कमल लिख देता ।
        स्याही होती शाहजहाँ की
              तुमको ताजमहल लिख देता ।
लेकिन कलम बांस के वन की
लिख ना सकी रीत मधुबन की।
     कैसे गीत महकते मेरे चन्दन मेरे पास नहीं है ।
       जैसा चित्र तुम्हारा वैसा चित्रण मेरे पास नहीं है।

देव सभा की तुम सुरबाला
    स्वीकारो यह शाल दुशाला
         मेरा पौरुष राम नहीं है
               ला दे जो कंचन मृग छाला
जीवन की ये छप्परछानी
बुनते बुनते गयी जवानी
       कैसे बुझती प्यास उमर की सावन मेरे पास नहीं है ।
        जैसा चित्र तुम्हारा वैसा चित्रण मेरे पास नहीं है।
तप ही तप वरदान नहीं है
       सच है ये अनुमान नहीं है
             सम्मानित रहकर दुनिया में
                   जी लेना आसान नहीं है।
राते खड़ी खड़ी है प्यासी
नींदे किन्तु हुई वनवासी।
       कैसे मांग भरू सपनो की आँगन मेरे पास नहीं है।
        जैसा चित्र तुम्हारा वैसा चित्रण मेरे पास नहीं है ।
प्रियांशु गजेन्द्र

सवैये

                         सवैये
रोज मिलौ जमुना तट पै तुम रोज करौ हमसे बरजोरी
काल्हि मरोरि दिह्यो बहियाँ तुम आज दिह्यो गगरी मोरि फोरी
आज निकारब सारी ढिठाई बचौ बचि पाऊ जौ खीस निपोरी
हौ तुम जौ बाबा नन्द के लालन तौ हमहूँ बृषभान किशोरी     
                               2
गांव हमारे जौ आइहौ कबौ तब द्याखब या तुम्हरी ठकुराई।
नैन के खेल मा माहिर हौ तुम खेल मा द्याहौ ई प्राण गवाई।
एक से एक हैं बाँकी गुवालिनि नैन से नैन कै होइ लड़ाई।
नेह की फ़ांस मा फांसि तुम्है मरिहैं वही गांव म नाच नचाई।
                               3
सीस लटै लटकैं घुंघराली यों देखि जिन्है नगिनी सरमाती।
कंगन के नग के दमके खन सूरज की किरनै लुकि जाती।
हैं ब्रजबाला कयू ब्रज मा जो क़ि होंठ मा लाली कबौन लगाती।
लेकिन जानिकै कुन्दकली भंवरा केरी या छतिया  फटि जाती।
                               4
है चुनरी लहर्यात ध्वजा असि नैन म तीर कटार धरे हैं।
भौह कमान चढ़ी चितवैं और होंठ पै लाल अंगार धरे हैं
हौ तुम काम कला के उपासक उइ रति कै अवतार धरे हैं।
राह न सूझि परी नटनागर उइ अतने हथियार धरे हैं
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                                5
बालपने करिया दह मा कहूँ मारि दिह्यो तुम एक सप्वाला।
है परसिद्ध गोवर्धन कै रथ है तुम्हरी अंगुरी पर ड्वाला ।
वेद पुरान न भुलौ मूला जहाँ पर रूप से हारे दिगम्बर भ्वाला।
खाय न जायो कहूँ मनमोहन माखन जानि कपास का ग्वाला।
                                6
हाथ लगायो तौ तुम भरि पाइहौ हटौ हमरी पकरौ नहि सारी।
नाहि तौ पाइहौ अबै हमसे तुम एकइ सांस मा लाखन गारी।
गोरी है देंह हमारी तुम्हारी है कारी करो न पिया मोहे कारी।
चाँद हौ तू अपने घर के हमहूँ अपने घर की उजियारी
                                  7
फूल मा कांटा बने हौ सदा एक रोज कबौ भंवरा बनि द्याखौ।
धूप न आई कबौ घर मा दूसरे के सिरे छपरा बनि द्याखौ।
होंठ पै प्यास रही न कबौ तुम प्यास तई गगरा बनिद्याखौ।
गोद मा खेलिहैं श्याम मूला तुम सूर तिना अंधरा बनि द्याखौ।
                
 प्रियांशु गजेन्द्र।

नागफनियों की गली में

गीत -

गहन गिरवर सघन वन में
बहकती पुरवा पवन में
दहकते धरती गगन में महकने दो प्यार मेरा
नागफनियों की गली में फूल का व्यापार मेरा
झोपड़ी या महल मैं कब देखता हूँ
हर खुली छत पर कबूतर भेजता हूँ
लोग लौटे हैं जहाँ से मुंह छुपाकर
मैं उन्ही गलियों में दर्पण बेंचता हूँ
चोट खाये लोग रहते जिस गली में
है वहीँ मरहम का कारोबार मेरा
नागफनियों की....................
खून के छींटे धरा से धो रहा हूँ
जो पुकारे मैं उसी का हो रहा हूँ
कल जहाँ बारूद की फसलें उगी थी
आज उन खेतों में मेंहदी बो रहा हूँ
दहकते अंगार बिखरे जिस गली में
है वहीँ चन्दन से निर्मित द्वार मेरा
नागफनियों की.....................
दिल में तेरे प्यार की दुनिया दफ़न है
भोर में ही दोपहर जैसी तपन है
मैं इधर शादी का जोड़ा बुन रहा हूँ
तू उन्ही धागों से क्यों बुनता कफ़न है
अर्थियों पर ही किया श्रृंगार तुमनें
डोलियों में चल रहा श्रृंगार मेरा
नागफ...........................
       प्रियांशु गजेन्द्र
बाराबंकी उ0प्र0

प्यार का यह दीप है

 गीत
 प्यार का यह दीप है जलता रहेगा
 साँझ ने डाला है डेरा
 ले रहे पंछी बसेरा
 रात की आराधना में
आ गया चन्दा चितेरा
यह युगाें से चल रहा चलता रहेगा प्यार..................................
झिझकते हाे साेंचते हाे
फिर अधर पर राेकते हाे
 ढाई आखर बाेलना है
क्याें पसीना पाेंछते हाे
 लाज का यह छल उमर छलता रहेगा
 प्यार..,..............
यह नदी कुछ कह रही है
रात दिन जो बह रही है
एक सागर के मिलन को
धुप बरखा सह रही है
रूप साँचे में ढला ढलता रहेगा।
प्यार.......................