शाख पर फिर फूल आये,
वन बगीचे मुस्कुराये।
पर नयन बिन रूप का बाजार लेकर क्या करूँगा।
तुम न हो पाये मेरे संसार लेकर क्या करूँगा।
यह कहानी प्यास की है ,
प्यार में विश्वास की है।
जो कभी मिल न पाये ,
उस धरा-आकाश की है।
हार फूलों का उठाये,
कदम तो तुमने बढ़ाये।
पर लगन बिन देह पर अधिकार लेकर क्या करूँगा।
साँस सांसो में भिड़ी है,
जंग जीवन में छिड़ी है
चाह में एक राधिका ,
बाँहो में लेकिन रुक्मणी है।
हाथ में मेंहदी लगाये,
दुल्हन घूँघट में लजाये।
पर मिलन बिन सेज़ पर श्रृंगार लेकर क्या करूँगा।
ह्रदय भर कर पीर लेकर ,
स्वप्न की जागीर लेकर।।
हैं मुझे सोने की आदत ,
हाथ में तस्वीर लेकर।
झूमती पुरवा हवाएँ,
कसक तो मन में उठाये।
पर गगन बिन पंख का बिस्तार लेकर क्या करूँगा।
तुम न हो पाये मेरे संसार लेकर क्या करूँगा।।।।।
प्रियांशु गजेन्द्र।।।।
वाह्ह्ह्ह्ह्
जवाब देंहटाएंअति सुन्दर
शानदार
बहुत खूब दादा आपसे जब मिले थे तब पता भी नही था आप कवि है पर आज आप की कविता जीवन की कड़ी है
जवाब देंहटाएंwah wah wah wah wah
जवाब देंहटाएंकाश 2016 में इसे पढ़ा होता ....💐💐💐💐👌👍👍😊😊😊
जवाब देंहटाएंअनुपम पंक्तियां 🌹🌷🙏
जवाब देंहटाएं