शुक्रवार, 9 दिसंबर 2016

प्यार का यह दीप है

 गीत
 प्यार का यह दीप है जलता रहेगा
 साँझ ने डाला है डेरा
 ले रहे पंछी बसेरा
 रात की आराधना में
आ गया चन्दा चितेरा
यह युगाें से चल रहा चलता रहेगा प्यार..................................
झिझकते हाे साेंचते हाे
फिर अधर पर राेकते हाे
 ढाई आखर बाेलना है
क्याें पसीना पाेंछते हाे
 लाज का यह छल उमर छलता रहेगा
 प्यार..,..............
यह नदी कुछ कह रही है
रात दिन जो बह रही है
एक सागर के मिलन को
धुप बरखा सह रही है
रूप साँचे में ढला ढलता रहेगा।
प्यार.......................

1 टिप्पणी: