शुक्रवार, 9 दिसंबर 2016

चित्रण मेरे पास नही है

नयनों को लिखता मधु शाला 
चितवन को मधु रस का प्याला
लेकिन जैसा रूप तुम्हारा दर्शन मेरे पास नहीं है।
जैसा चित्र तुम्हारा वैसा चित्रण मेरे पास नहीं है ।

तुमको गीत ग़ज़ल लिख देता
   या तो नील कमल लिख देता ।
        स्याही होती शाहजहाँ की
              तुमको ताजमहल लिख देता ।
लेकिन कलम बांस के वन की
लिख ना सकी रीत मधुबन की।
     कैसे गीत महकते मेरे चन्दन मेरे पास नहीं है ।
       जैसा चित्र तुम्हारा वैसा चित्रण मेरे पास नहीं है।

देव सभा की तुम सुरबाला
    स्वीकारो यह शाल दुशाला
         मेरा पौरुष राम नहीं है
               ला दे जो कंचन मृग छाला
जीवन की ये छप्परछानी
बुनते बुनते गयी जवानी
       कैसे बुझती प्यास उमर की सावन मेरे पास नहीं है ।
        जैसा चित्र तुम्हारा वैसा चित्रण मेरे पास नहीं है।
तप ही तप वरदान नहीं है
       सच है ये अनुमान नहीं है
             सम्मानित रहकर दुनिया में
                   जी लेना आसान नहीं है।
राते खड़ी खड़ी है प्यासी
नींदे किन्तु हुई वनवासी।
       कैसे मांग भरू सपनो की आँगन मेरे पास नहीं है।
        जैसा चित्र तुम्हारा वैसा चित्रण मेरे पास नहीं है ।
प्रियांशु गजेन्द्र

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