शुक्रवार, 9 दिसंबर 2016

सवैये

                         सवैये
रोज मिलौ जमुना तट पै तुम रोज करौ हमसे बरजोरी
काल्हि मरोरि दिह्यो बहियाँ तुम आज दिह्यो गगरी मोरि फोरी
आज निकारब सारी ढिठाई बचौ बचि पाऊ जौ खीस निपोरी
हौ तुम जौ बाबा नन्द के लालन तौ हमहूँ बृषभान किशोरी     
                               2
गांव हमारे जौ आइहौ कबौ तब द्याखब या तुम्हरी ठकुराई।
नैन के खेल मा माहिर हौ तुम खेल मा द्याहौ ई प्राण गवाई।
एक से एक हैं बाँकी गुवालिनि नैन से नैन कै होइ लड़ाई।
नेह की फ़ांस मा फांसि तुम्है मरिहैं वही गांव म नाच नचाई।
                               3
सीस लटै लटकैं घुंघराली यों देखि जिन्है नगिनी सरमाती।
कंगन के नग के दमके खन सूरज की किरनै लुकि जाती।
हैं ब्रजबाला कयू ब्रज मा जो क़ि होंठ मा लाली कबौन लगाती।
लेकिन जानिकै कुन्दकली भंवरा केरी या छतिया  फटि जाती।
                               4
है चुनरी लहर्यात ध्वजा असि नैन म तीर कटार धरे हैं।
भौह कमान चढ़ी चितवैं और होंठ पै लाल अंगार धरे हैं
हौ तुम काम कला के उपासक उइ रति कै अवतार धरे हैं।
राह न सूझि परी नटनागर उइ अतने हथियार धरे हैं
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                                5
बालपने करिया दह मा कहूँ मारि दिह्यो तुम एक सप्वाला।
है परसिद्ध गोवर्धन कै रथ है तुम्हरी अंगुरी पर ड्वाला ।
वेद पुरान न भुलौ मूला जहाँ पर रूप से हारे दिगम्बर भ्वाला।
खाय न जायो कहूँ मनमोहन माखन जानि कपास का ग्वाला।
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हाथ लगायो तौ तुम भरि पाइहौ हटौ हमरी पकरौ नहि सारी।
नाहि तौ पाइहौ अबै हमसे तुम एकइ सांस मा लाखन गारी।
गोरी है देंह हमारी तुम्हारी है कारी करो न पिया मोहे कारी।
चाँद हौ तू अपने घर के हमहूँ अपने घर की उजियारी
                                  7
फूल मा कांटा बने हौ सदा एक रोज कबौ भंवरा बनि द्याखौ।
धूप न आई कबौ घर मा दूसरे के सिरे छपरा बनि द्याखौ।
होंठ पै प्यास रही न कबौ तुम प्यास तई गगरा बनिद्याखौ।
गोद मा खेलिहैं श्याम मूला तुम सूर तिना अंधरा बनि द्याखौ।
                
 प्रियांशु गजेन्द्र।

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