शुक्रवार, 9 दिसंबर 2016

नागफनियों की गली में

गीत -

गहन गिरवर सघन वन में
बहकती पुरवा पवन में
दहकते धरती गगन में महकने दो प्यार मेरा
नागफनियों की गली में फूल का व्यापार मेरा
झोपड़ी या महल मैं कब देखता हूँ
हर खुली छत पर कबूतर भेजता हूँ
लोग लौटे हैं जहाँ से मुंह छुपाकर
मैं उन्ही गलियों में दर्पण बेंचता हूँ
चोट खाये लोग रहते जिस गली में
है वहीँ मरहम का कारोबार मेरा
नागफनियों की....................
खून के छींटे धरा से धो रहा हूँ
जो पुकारे मैं उसी का हो रहा हूँ
कल जहाँ बारूद की फसलें उगी थी
आज उन खेतों में मेंहदी बो रहा हूँ
दहकते अंगार बिखरे जिस गली में
है वहीँ चन्दन से निर्मित द्वार मेरा
नागफनियों की.....................
दिल में तेरे प्यार की दुनिया दफ़न है
भोर में ही दोपहर जैसी तपन है
मैं इधर शादी का जोड़ा बुन रहा हूँ
तू उन्ही धागों से क्यों बुनता कफ़न है
अर्थियों पर ही किया श्रृंगार तुमनें
डोलियों में चल रहा श्रृंगार मेरा
नागफ...........................
       प्रियांशु गजेन्द्र
बाराबंकी उ0प्र0

20 टिप्‍पणियां:

  1. Virodhabhas ka atyant hi safal prayog ,bahut sundar rachna Hai guruji

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  2. बहुत ही सुन्दर गीत है लगभग 50बार सुना है मैने

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  3. बहुत बड़ा फैन हू सर आपका
    हिंदी साहित्य की बगिया मे नयी खिलतीं कलि हो आप

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  4. लंबे समय बाद किसी हिंदी साहित्य को समृद्ध कवि मिला है
    शब्दो का चयन गीत का वर्णन अति सुंदर

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  5. वाह बहुत सुंदर दादा
    आप मधुर गीत लिखते आपकी कविताओं माधुर्य और प्रसाद गुण समाहित हैं।

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  6. शानदार जबरदस्त जिंदाबाद

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  7. Aapki yah kavita mere hriday ki gahraiyon ko chhu gayi hai,,,, bahut dundar bhai,,,,,,

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  8. आपको प्रणाम महाशय। हम सभी युवाओं को समर्पित यह गीत है। आप को यूट्यूब पर सुना था ।बहुत ही अच्छा लगा पढ़ कर सर।

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  9. प्रियांशु भइया, आपका पुरुष-चिंतन मुझे अति प्रिय है ।

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  10. Sir I love your poetries. You ignite, provoke, calm, send emotional messages through your writeups. Great great going sir.

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  11. हे राम! नहीं तुमसा कोई, अविचल सारे संसार तलक।
    मैं उम्मीदों में बैठा हूं, तेरे अगले अवतार तलक।।

    रघुनाथ कृतार्थ करो फिर से, माता कौशिल्या का दामन।
    बचपन की लीला दिखलाओ, हैं तरस रहे सूने आंगन।।

    गीली मिट्टी, कोमल पग में, उस पायल की झंकार तलक।
    मैं उम्मीदों में बैठा हूं......


    गुरुकुल भयमुक्त बनाने को, ताड़का नाश का रूप वही।
    हे राम! अहिल्या तारण का, दिखलाओ सत्य स्वरूप वही।।

    फिर से मरीचि सम राक्षस को, फेंके जो सागर पार तलक।
    मैं उम्मीदों में बैठा हूं......

    फिर से श्रृंगार जनकपुर का, सीता का वही स्वयंवर भी।
    टंकार धनुष की दिखला दो, कंपित था जिससे अम्बर भी।।

    शिव धनुष उठाने की कोशिश, करते रावण की हार तलक।
    मैं उम्मीदों में बैठा हूं......

    सूर्योदय पर अभिषेक पर्व का, सुनना है उदघोष वही।
    पथभ्रष्ट कुमति कैकेई का, लालच पूरित आक्रोश वही।।

    दशरथ सम रघुवंशी राजा, वचनों के पालनहार तलक।
    मैं उम्मीदों में बैठा हूं......

    सह धूप छांव संघर्ष सभी, वर्षों तक वन में पड़े रहे।
    पितु वचन निभाने को फिर भी, तुम आदर्शों पर अडे रहे।।

    महलों से लेकर जंगल के, उस चित्रकूट आगार तलक।
    मैं उम्मीदों में बैठा हूं.......

    लक्ष्मण की अटल भाव सेवा, सीता सम पतिव्रता नारी।
    जीवन की अगम परिस्थिति की, फिर से बतलाओ व्यथा सारी।।

    सीता का हरण किया जिसने, उस रावण के प्रतिकार तलक।
    मैं उम्मीदों में बैठा हूं.......

    खगराज जटायू का राघव, फिर से क्रंदन दोहरा दीजै।
    शबरी के प्रेमी बेरों का, वो अभिनन्दन दोहरा दीजै।।

    सुग्रीव मैत्री से लेकर, फिर बाली के उद्धार तलक।
    मैं उम्मीदों में बैठा हूं.......

    अंगद के अडिग पांव का फिर, दुर्लभ दर्शन अब कब होगा।
    इंतजार है लंका में, फिर मेघनाद वध कब होगा।।

    लंका विध्वंश अरु रावण के, उस नाश सकल परिवार तलक।
    मैं उम्मीदों में बैठा हूं.......

    हे राम! यहां रावण घर-घर, अनगिनत कंस हैं भरे हुए।
    घनघोर विषैले सर्पों के, चहुं ओर दंश हैं भरे हुए।।

    है 'जिगर' आस इस जीवन की, इन कंसों के संघार तलक।
    मैं उम्मीदों में बैठा हूं.......

    हर तरफ नफरती आलम है, अब प्रेम बचा इतिहासों में।
    हे राम! तुम्हीं अब प्राण भरो, फिर से इन जिंदा लाशों में।।

    चाहत है प्रेम रहे दिल में, इन सांसों के आधार तलक।
    मैं उम्मीदों में बैठा हूं.......

    मन का मयूर फिर हंसमुख हो, जीवन में नई उड़ान मिले।
    सत्य अहिंसा शतपथ पर, भारत को नव उत्थान मिले।।

    आदिकाल तक धर्म ध्वजा फहरे सारे संसार तलक।
    मैं उम्मीदों में बैठा हूं......

    जहां जाति पाति का भेद न हो, सत्कर्मों को आधार मिले।
    हर कर्मठ मानव के सपनों को, नित नूतन आकार मिले।।

    धरती पर मानव जीवन की, कर दो बेड़ा पार तलक।
    मैं उम्मीदों में बैठा हूं......

    चहुं ओर सनातन यश फैले, हर भारतवासी गर्वित हो।
    भारत फिर विश्व गुरु बन कर, संपूर्ण धरा पर चर्चित हो।।

    हे राम! हिन्द की धरा रहे, यमुना गंगा की धार तलक।
    मैं उम्मीदों में बैठा हूं.......

    जन- जन में फिर से राम बसें, सियरूप बनें अबला नारी।
    दिखलाओ फिर से चमत्कार, गुणगान करे दुनिया सारी।।

    हे राम! विनय यह तुमसे है, जीवन की अंतिम हार तलक।
    मैं उम्मीदों में बैठा हूं.......

    🙏🌹 जितेन्द्र राजपुरी 'जिगर' 🌹🙏

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