मै आँसू बेंच रहा हूँ
है जग में कोई ख़रीदार जो ले ले और मुझे दे दे,
मुस्कान अधर पर दो पल की,
क्या है कोई ?
आए प्राणों को ले निकाल उनके इन मेरे प्राणों से,
पल भर को नदिया दूर करे अगमित उत्ताल पहाड़ों से,
क्या है कोई जो हटा सके बरसों से जमी हुई पीड़ा,
छाती से अचल हिमाचल की
क्या है कोई ?
आँखों से दूर करे चेहरा,पहचान मिटा दे ख़्वाबों से,
पौधों से अलग करे माटी,ख़ुशबू को अलग गुलाबों से,
क्या है कोई जो बरसों से रुनझुन सुनते इन कानो से
आवाज मिटा दे पायल की,
क्या है कोई?
सपनो के अतल समन्दर से यादों के मोती ले निकाल,
मछली को जल से दूर करे जल में संयम का जाल डाल,
क्या है कोई इस दुनिया में जो तपती विरह दोपहरी में,
बिसरा दे सुधियाँ आँचल की,
क्या है कोई ?
प्रियांशु गजेन्द्र