मंगलवार, 20 अगस्त 2019

इसीलिए मैंने सम्हाल रखे हैं आँसू

इसीलिए मैंने सम्हाल रखे हैं आंसू,
बरसूंगा तो बादल अपमानित होगा।

धरती पर उग आएगी इतनी पीड़ा,
बढ़ जायेगा खारापन इन झरनों का,
दुश्मन का सम्मान बहुत बढ़ जायेगा ,
हाल कहूंगा यदि तुमसे मै अपनों का,

इसीलिए अब मौन रहूँगा सोच लिया है,
बोलूंगा तो गंगाजल अपमानित होगा।

धीरे धीरे गीत हुआ जाता है जीवन,
अंतर्मन ने विकल रागिनी साधी है,
मेरी इच्छाओं के विरुध्द सपने लाई,
हर रात हमारे नयनों की अपराधी है।

इसीलिए मै देख न पाया स्वप्न तुम्हारे,
देखूंगा मै तो पागल अपमानित होगा।

यह विछोह की रात और यह सूनापन,
हर ओर उदासी में डूबा डूबा जीवन,
वह चाँद जिसे मैंने केवल अपना समझा,
दे रहा गगन के सब तारों को आमंत्रण।

इसीलिए सब दीपक बुझा रहा हूँ प्रियवर,
जागा तो तारामंडल अपमानित होगा।

प्रियांशु गजेन्द्र

मेरे गीत न गाना मेरी

मेरे गीत न पढ़ना मेरी सोन चिरैया,
वरना नभ में उड़ना दूभर हो जाएगा।

बादल तुम्हें लगेंगे मेरे आँसू जैसे,
तारे लगेंगे मेरे डब डब नयना हैं।
चाँद लगेगा तुमको मेरी भोली सूरत
सूरज जैसे तपता मेरा बिछौना है।

मुझे न रखना अपने मन मंदिर में वरना,
यह तन मानव से ईश्वर हो जाएगा ।

हवा लगेगी महकी महकी साँसें मेरी,
गगन लगेगा फैली-फैली बाहें हैं,
तुम उन्मुक्त गगन के पंछी प्रियतम मेरे,
उछ्वासों तक जाती मेरी राहें हैं।

मत ठहरो धरती पर मेरी ख़ातिर वरना
यह जीवन नभ से ऊपर हो जाएगा।

अम्बर का हर कोना स्वागत करे तुम्हारा
तारे बिछ बिछ जाएँ पावन चरणों में,
मंगल गीत सुनाएँ तुमको दसों दिशाएँ
सपने तरस जायँ आने को सपनों में।

जाओ जाओ बुलबुल इस बगिया से वरना
इसका भी तृण तृण सुंदर हो जाएगा।

प्रियांशु गजेन्द्र