मेरे उपवन को छोड़ चली जाओ कलियों,
मैंने अब मदगंधों से नाता तोड़ लिया।
हर मौसम में चाह जिन्हें हरियाली की उन
सावन के अन्धों से नाता तोड़ लिया।
काँटों से अब ब्याह लिया है जीवन को,
मुस्काती हंसती ये कलियाँ क्या करना,
चलने को जब ठान लिया ही है मन में,
पत्थर हो या मख़मल गलियाँ क्या करना।
जो मंज़िल तक साथ नही दे सकते मेरा,
मैंने उन कन्धों से नाता तोड़ लिया।
कलियाँ नही उगाने का अब मन मेरा तो,
बादल बरसे या बरसे बिन रह जाए,
श्याम नही अब लौटेंगे वृंदावन में फिर,
राधा का काजल ठहरे या बह जाए।
यमुना की लहरें सिमटें या लहराएँ,
मैंने तटबंधों से नाता तोड़ लिया।
थोड़ी सी सुगन्ध की ख़ातिर यौवन का,
रक्त नही दे पाउँगा मैं क्यारी को,
अब चाहे तो सारा पतझर आ जाए,
आग लगे इस फागुन की तैयारी को,
जो इस दिल का गीत नही गा सकते स्वर में,
मैंने उन छ्न्दों से नाता तोड़ लिया।
Priyanshu Gajendra