बुधवार, 26 जून 2019

मुक्तक

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यह भँवर है पर निकलना ही पड़ेगा,
है तो मुश्किल पर सम्हलना ही पड़ेगा,
आपकी जब देखने की दृष्टि बदली,
रूप मुझको भी बदलना ही पड़ेगा।

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जा रहा हूँ अब तुम्हारे शहर से मैं,
भोर संध्या रात से दोपहर से मैं,
चाहता तो था तुम्हारी ग़ज़ल होना,
किन्तु ख़ारिज हूँ तुम्हारी बहर से मैं।

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मंगलवार, 25 जून 2019

आज मन बोझिल बहुत है।

आज मन बोझिल बहुत है,

मेघ घिर आये गगन में,
बूंद बन छाए नयन में,
आज कुछ ऐसा हुआ है,
जो न सोचा था सपन में।

राह में ठोकर लगी है दूर भी मंजिल बहुत है,
आज मन बोझिल बहुत है।

कुछ कही कुछ अनकही हैं,
पीर सब मैने सही है,
देह दुनिया घूमती पर,
आत्मा जिसकी रही है
आज वह मुझसे विमुख है,
जिसमे मेरा सर्व सुख है,

उनको मालुम भी नही है मेरा मन चोटिल बहुत है
आज मन बोझिल बहुत है।

उसने कुछ अंतस पढा था,
मेरा कुछ साहस बढ़ा था,
तुच्छ माला फूल थे पर,
पूजने का ज्वर चढ़ा था।
देवता तो देवता है,
उसकी भी तो क्या खता है,

मैंने जो कुछ खो दिया है उनको वह हासिल बहुत है।
आज मन बोझिल बहुत है।
प्रियांशु गजेन्द्र।