एक मुट्ठी में नफरत एक में प्यार
जाने किस दुनिया से लाये,
यूँ समझो दो दीप जलाए,
एक से जगमग सारी धरती एक से जग अंधियार।
एक ओर पूरा मयखाना एक ओर दी प्यास,
तुमको काम कलाएं देकर मुझे दिया सन्यास,
तुम जबसे हो गए पराये,
हमने भी दो गीत बनाये,
एक अधर से मरुथल गाया एक से मलय बयार
एक मुट्ठी........................।
केसर के पौधों में आये हैं पत्थर के फूल,
माली ने बरगद रोपा था लेकिन उगे बबूल।
कली कली का खून बहाये ,
यूँ समझो डोली लुटवाये,
एक साथ मिलकर आये हैं डाकू और कहाँर।
एक मुट्ठी..............…...
तुम्हे अधर की हंसी मिली है मुझे नयन में नीर,
इस दिल्ली में राजघाट के पीछे है कश्मीर ,
भाग्य लेख ना मिटे मिटाए
दुःख है वे खत गये जलाए।
जिनमें जुम्मन की चौखट पर अलगू का दरबार।
एक मुट्ठी में...…...............।