गुरुवार, 31 अक्तूबर 2019

जिए मगर बस जैसे तैसे

आज तुम्हारे बिन चौथा दिन जिए मगर बस जैसे तैसे,
अभी जख्म ताजे ताजे थे सिए मगर बस जैसे तैसे।

भोर हुई सूरज ले आया कुछ किरणों की मद्धिम लाली,
फूलों ने मुस्कान बिखेरी पत्तों ने फेंकी हरियाली।
तारों की बारात लुट गई दूल्हा चांद नदारद नभ से,
पूरब में सोना ही सोना पश्चिम की बांहे खाली।

देता रहा दिलाशा मन को सब दिन एक नहीं रहते हैं,
सब्र किए लाखों प्रकार से किए मगर बस जैसे तैसे।

भरी दोपहरी धूप चटख थी लगा तुम्हारा ही होना,
आधे तन पर परछाई है आधे पर सोना ही सोना,
थोड़ी छाया थोड़ी गर्मी थोड़ी खुशियां थोड़े दुख हैं,
थोड़ा सा जीवन है जिसमें दुख सुख बोना ही बोना।

दीपावली मना ली हमने लगभग सारे व्रत विधान से,
तुम बिन जलना था तो जले भी दिए मगर बस जैसे तैसे।

सांझ हुई तारों का मेला जिनमें चन्दा फिरे अकेला,
पूरब का सूरज पश्चिम आया तो थी ढलने की बेला।
दो पल पूरब दो पल पश्चिम दो दो पल में सारा जीवन।
दो पल सारी राम कहानी दो पल का ही है खेला।

दो पल जीवन की मधुशाला दो दो पल के प्याले हैं सब
दो दो पल के पैमानों से हम दो दो पल पिए मगर बस जैसे तैसे।

प्रियांशु गजेन्द्र