शुक्रवार, 2 फ़रवरी 2018

न वह मुझसे बोली

सुबह शाम हर दोपहर नाचती थी,
घड़ी दो घड़ी भर ठहर नाचती थी,
लहरकर लहरकर लहर नाचती थी
न वह नाच हारी न मै देख हारा,
न वह मुझसे बोली न मैंने पुकारा।

कोई थम गया है कोई अब चला है
कहीं रौशनी है कहीं जलजला है
नदी हँस रही हँस रहा है समन्दर,
उसे क्या पता एक हिमालय गला है।
जलाते जलाते जली जा रही थी,
नियति के करों से छली जा रही थी
प्रणय गीत गाती चली जा रही थी।
न वह चलके हारी न मै थमके हारा
न वह मुझसे..........

कई फूल टूटे खिले भी नही थे
कई तो भ्रमर से मिले भी नही थे
नहीं बोल पाये ये दीवानगी थी,
वरन होंठ मेरे सिले भी नहीं थे
ह्रदय में अधर की तपन जल रही है
पुरानी प्रथा है प्रथा चल रही है
मगर प्यार की हर कसम पल रही है
न वह श्वांस हारी न मै प्राण हारा।
न वह मुझसे बोली..................।

अभी कुछ कदम ही गयी होगी आगे,
उसे रोक भी ना सके तुम अभागे,
कोई भोर आये कोई सूर्य आये,
किरण क्या करे भाग ही यदि न जागे,
हृदय ने कहे जो हृदय ने सुनाये,
समय के अधर ने वही गीत गाये,
रहे उसके दिल में भी रहकर पराये,
न वह मन से उतरी न मैंने उतारा।
न वह मुझसे..........................!

प्रियांशु गजेन्द्र