इसीलिए मैंने सम्हाल रखे हैं आंसू,
बरसूंगा तो बादल अपमानित होगा।
धरती पर उग आएगी इतनी पीड़ा,
बढ़ जायेगा खारापन इन झरनों का,
दुश्मन का सम्मान बहुत बढ़ जायेगा ,
हाल कहूंगा यदि तुमसे मै अपनों का,
इसीलिए अब मौन रहूँगा सोच लिया है,
बोलूंगा तो गंगाजल अपमानित होगा।
धीरे धीरे गीत हुआ जाता है जीवन,
अंतर्मन ने विकल रागिनी साधी है,
मेरी इच्छाओं के विरुध्द सपने लाई,
हर रात हमारे नयनों की अपराधी है।
इसीलिए मै देख न पाया स्वप्न तुम्हारे,
देखूंगा मै तो पागल अपमानित होगा।
यह विछोह की रात और यह सूनापन,
हर ओर उदासी में डूबा डूबा जीवन,
वह चाँद जिसे मैंने केवल अपना समझा,
दे रहा गगन के सब तारों को आमंत्रण।
इसीलिए सब दीपक बुझा रहा हूँ प्रियवर,
जागा तो तारामंडल अपमानित होगा।
प्रियांशु गजेन्द्र
वाह गजब दिल खुश हो गया दादा
जवाब देंहटाएंJindabad bhaiya
जवाब देंहटाएंबहुत खूब
जवाब देंहटाएंबहुत खूब सर
जवाब देंहटाएंWah wah kya bat hai sir.
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