शनिवार, 10 दिसंबर 2016

इन अधरों को तुमसे आशा है

इस पनघट से उस पनघट तक 
घूमा घट से गंगा तट तक 
मन का मुसाफिर फिर भी प्यासा है ,
इन अधरों को तुमसे आशा है
मयखाने की ओर ना देखूँ नीलगगन का छोर न देखूँ 
तुम यदि मेरी ओर देख लो मै दुनिया की ओर न देखूँ
इन नयनों को उन नयनों से 
इन सपनो को उन सपनों से 
सदियों लम्बी एक दिलाशा  है
इन अधरों .....................
मंदिर से क्या चाह सुनाऊं मस्जिद की क्या थाह लगाऊं 
तुम मेरे हमराह बनो तो मै जन्नत की राह न जाऊं 
गुरूद्वारे से गिरजाघर तक 
इस धरती से उस अम्बर तक 
बोल रहे खग प्यार की भाषा है
इन अधरों.............................
पत्थर भी यदि हँसते रोते हम इतने अनमोल न होते 
अक्षर मिटटी मोल न होते प्यार के दो यदि बोल न होते
पंखुरियों के द्वार खोल दो
मेरे लिए इक बार बोल दो 
प्रियतम की प्रिय से अभिलाषा है 
इन अधरों............................

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