शुक्रवार, 9 दिसंबर 2016

रंग दे चुनरिया मेरे देश की

कोई आये रे।
रंग दे चुनरिया
            लाल धानी या केसरिया
                             मेरे देश की।
धरती नभ् की पिचकारी से रंग फिसलकर आए
इस बबूल के वन से भी मकरंद पिघलकर आए
ऐसा फागुन आये अबकी काँटों की सूरत बदले
जे एन यू से कोई विवेकानंद निकलकर आये
और गाये रे
सोने की चिरैय्या
           होगी फिर से धरती मैया
                                    मेरे देश की।
कहीं पे रंग दे भगवद्गीता कहीं-कहीं गुरुवाणी,
कहीं पे रंग दे नटवर नागर कहीं पे राधा रानी,
कोई रंग बना दे मौला एक रंग जग रंग जाये,
रंग-रंग जैसा हो जाये पानी जैसा पानी।
मुस्कुराये रे फूल पे तितिलिया
                गाये डाल पे कोयलिया।
                                  मेरे देश की।

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