**********× गीत ×**********
आपकी बाँहों में आना चाहता हूँ
द्वार सावन की झड़ी है,
यह मिलन की शुभ घडी है,
और एक दीवार अपने बीच बरसों से खड़ी है,
मैं इसे तत्क्षण गिराना चाहता हूँ
आपकी बाँहों में....................
जानता हूँ कंटकों के बीच है बगिया तुम्हारी।
फूल चुनने में उजड़ जायेगी यह दुनिया हमारी।
मौत मुंह बाए खड़ी है,
प्रीति पर उससे बड़ी है,
पत्थरों से खेलने वाले तुझे किसकी पड़ी है।
आ इधर मै चोट खाना चाहता हूँ,
आपकी--------------
पांव का कर लो महावर रंग हूँ धुंधला रहा हूँ
होंठ से छू लो मुझे मै फूल हूँ कुम्हला रहा हूँ
जिंदगी इतनी बड़ी है
प्यार जिसमे दो घड़ी है
देंह अपराधिनि हमारी बांह तेरी हथकड़ी है।
कैद कर ले मुक्ति पाना चाहता हूँ
आपकी बाँहों............
फूल चुन ले बाग़ से तू देख पतझर आ न जाए
रोक ले ओ राधिके मोहन तेरा मथुरा न जाए
दूर तू इतनी खड़ी है,
मन में व्याकुलता बढ़ी है,
मौन हैं कंगन तुम्हारे शांत बिछुए की लड़ी है।
दूर रहकर पास आना चाहता हूँ।
आपकी...........:-O..
प्रियांशु गजेन्द्र
बाराबंकी
9415587799
Waah! kya bat sir ji
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