शाख़ से उतरा हुआ इक फ़ूल हूँ मैं,
कौन सुनता है मेरे मन की व्यथाएँ,
लोग मुझसे हाल तेरा पूछते हैं,
तुम कहो लोगों से हम क्या-क्या बताएँ।
बाग़ के सब भ्रमर मुझसे पूछते हैं ,
अनगिनत वे सफ़र मुझसे पूछते हैं,
प्यास पहले मरी या पानी मरा था,
नदी नाले नहर मुझसे पूँछते हैं ।
पहले खारा सिन्धु था या नदी खारी
उफनती लहरों से हम क्या क्या बताएँ।
शाख़ से उतरा हुआ ......................।
क्या बताएँ राजपथ तुमने चुने हैं,
या कि तुमने स्वप्न सब ऊँचे बुने हैं
या की कह दूँ स्वर्ण मंडित कुंडलों में
बोल पीतल के हमारे अनसुने हैं।
शोर के आगे हुए हैं गीत बौने,
काँपते अधरों से हम क्या क्या बताएँ।
शाख़ से उतरा हुआ ......................।
एक चिड़िया गुनगुनाना चाहती है
मेरे स्वर में स्वर मिलाना चाहती है
ज़िंदगी कहती है दुनिया जीत लेना,
मौत मिट्टी में मिलाना चाहती है ।
जिंदगी बढ़ती है ज्यो ज्यों सांस घटती
उमड़ते सपनों से हम क्या क्या बताएँ।
शाख़ से उतरा हुआ ......................।
प्रियांशु गजेन्द्र
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