बुधवार, 1 मई 2019

जिन हवाओं में घुलेंगे गीत मेरे

जिन हवाओं में घुलेंगे गीत मेरे
उन हवाओं में नमी आ जाएगी,

पृष्ठ सब भीगे हुए हैं डायरी के,
शब्द सारी रात कल सोए नही हैं,
और काग़ज़ भीगकर दरिया हुआ है,
नयन तो इतना कभी रोए नहीं हैं।

लिखके सारा दर्द तो ना मिट सकेगा
पर दवाओं में कमी आ जाएगी ।

अर्थ पर हमने बहुत अंकुश रखा है,
जान पाओगे न तुम मेरी कहानी,
समझना चाहो तो बस इतना समझ लो,
आग मन की बह रही है बनके पानी।

प्यार में जलकर कभी देखो किसी के,
रात थोड़ी शबनमी आ जाएगी ।

ज़िंदगी का एक हिस्सा वेदना का,
एक हिस्सा मौत का उपहास है,
एक हिस्से में भरत को राजधानी
दूसरे में राम का वनवास है।

नभ में रहने वालों यह पैग़ाम सुन लो
पाँव तक एक दिन ज़मी आ जाएगी

प्रियान्शु गजेन्द्र

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