बुधवार, 10 जुलाई 2019

अध्याय पूरा कर दिया

मैं तुम्हारे प्रेम की बस भूमिका ही लिख रहा था,
और तुमने आख़िरी अध्याय पूरा कर दिया ।

पृष्ठ पर अक्षर न उभरे जिल्द पर छायी न लाली,
तूलिका मैंने न अब तक हाथ में अपने सम्हाली,
चाह थी हर एक पन्ने पर तुम्हारा नाम लिखता,
हाय तुमने तो अचानक लेखनी ही तोड़ डाली,

ज़िंदगी के सरस मधुवन का तुम्हें लिखता सुमन मैं,
किन्तु तुमने चुभन का पर्याय पूरा कर दिया ।
मैं तुम्हारे .........................................।

जानता था तुम न मेरे साथ मंज़िल तय करोगी,
बस हमारी ज़िंदगी के क़ीमती पल क्षय करोगी ।
बस यही मालूम ना था दिल से मैं चाहूँगा तुमको,
और तुम हर पल हमारे साथ बस अभिनय करोगी।

चाहता था मैं तुम्हें शीतल पवन या छांव लिखना
किन्तु तुमने तपन का अभिप्राय पूरा कर दिया ।
मैं तुम्हारे ..............................................।

तुम निकलना चाहते थे आ गया तुमको निकलना,
पर किसी सूरज के आगे फिर कभी भी मत पिघलना,
तुम तो दरिया बन किसी सागर से जाकरके मिलोगे,
किन्तु सूरज को पड़ेगा एक नही सौ बार ढलना।

प्यार है अपराध मेरा हद से ज़्यादा कर गया मैं,
और तुमने दर्द देकर न्याय पूरा कर दिया ।
मैं तुम्हारे .......……..............................।

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