बुधवार, 10 जुलाई 2019

अब न आऊंगा तुम्हारे द्वार

अब न आऊँगा तुम्हारे द्वार
यह लो जा रहा हूँ,
हार मेरी है मुझे स्वीकार,
यह लो जा रहा हूँ,
चाहते हो यदि मुझे बिल्कुल भुलाना,
गीत मेरे भूलकर मत गुनगुनाना,
जब लगे अवसाद में डूबा हुआ हूँ,
तुम जहाँ होना वहीं से मुस्कुराना।

मुस्कुराहट रूप का सिंगार
यह लो जा रहा हूँ।

मेरे दिल में तुम हो पर ताले नहीं हैं
रुक तो जाता रोकने वाले नहीं हैं
राधिका के प्रेम की दुनिया प्रशंशक,
कृष्ण का तप देखने वाले नहीं हैं।

व्यर्थ लगता हो गया अवतार
यह लो जा रहा हूँ।

जिस हृदय में प्यार की दौलत नही है,
वह हृदय वह घर है जिसमें छत नही है,
मैं वहाँ सूरज उगाने चल पड़ा था,
जिसके घर में धूप की क़ीमत नही है ।

हो गयी हर किरण अस्वीकार ,
यह लो जा रहा हूँ।

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