माँ
धरती जहाँ की स्वर्ग है भगवान आसमाँ।
रहती हैं जहाँ माँ।।
आँगन में जहाँ साँझ उतर आती जोंधइया।
गोबर से लीपी भूमि पे इठलाते कन्हैया।।
आता है जहाँ बाग में मधुमास या पतझण।
खुशियाँ जहाँ सवार हो बादल की नाव पर।।
धरती की कोर-कोर में भर जाती हरितिमा।
रहती हैं जहाँ माँ।।
लेकर सहारा फूस का लौकी चढ़ी हुई।
लगता है ज्यों इंसान की नीयत बढ़ी हुई।।
चंदा पर सूत काटती है आज भी नानी।
अम्मा की कथाओं में है परियों की कहांनी।।
दादा है कालीदास व दादी विद्योतमा।
रहती हैं जहाँ माँ।।
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