शनिवार, 8 अप्रैल 2017

नदिया धीरे बहो

कागज की यह नाव मेरी इस तट से उस तट जाने दो,
नदिया धीरे बहो संदिशा प्रियतम तक पहुंचाने दो।

तुम्हें नही मालूम नाव मेंरी पहली चिट्ठी है,
दिल की एक आहट है इसमें कुछ मीठी कुछ खट्टी है,
इसमें हैं खुशियो के आंसू होंठो की मुस्काने हैं,
विरह लदा है तनहाई है इस दुनिया के ताने हैं
विरहानल से झुलसे तँ को बैठ कहीं बतलाने दो
नदिया धीरे बहो संदेशा प्रियतम...............।

मंदिर की सीढ़ियां लिखी हैं संग उनकी फरियाद लिखी,
भीड़ लिखी है तनहाई है और किसी की याद लिखी।
खुशियों के कुछ शहर लिखे हैं और दुखों के गांव लिखे,
और महावर रचे हुए दो छम छम करते पांव लिखे।
धूप छाँव को इस बगिया में बैठ कहीं बतलाने दो,
नदिया धीरे बहो संदेशा........................।

बालों का गजरा है इसमें दो नयनों का काजल है,
बिंदिया कुमकुम रोली कंगन घुंघरू वाली पायल है
नौका में श्रृंगार भरा है चुनरी रेशम वाली है,
केसर की कुछ गन्ध रखी है कुछ अधरों की लाली है
मेरे प्यार की मेहँदी उनके हाथों में चढ़ जाने दो।
नदिया धीरे बहो संदेशा प्रियतम....................।

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