मंगलवार, 11 अप्रैल 2017

देवोपम पटेल

देवोपम पटेल
भारमाता के आँचल में चमका एक सितारा था।
बल्लभ भाई नाम था जिसका काल भी उससे हारा था।।
अठ्ठारह सौ पिचहत्तर यह भारत भुला नहीं सकता।
जुल्मी अंग्रेजी गाथाएँ, दिल में सुला नहीं सकता।।
अंधकार था दिग दिगन्त तक, सूरज नजर न आता था।
जनता बेबस चीख रही थी, दर्द सहा न जाता था।।
इंकलाब कहने वालों को, काला पानी होता था।
लूट मची थी सत्ता में, कानून यहाँ का सोता था।।
तब ब्रह्मा ने विष्णु रुप देवोपम रूप उतारा था।
बल्लभ भाई नाम था जिसका काल भी उससे हारा था।।

खेड़ा जनपद में अत्याचारों का पारावार न था।
भारत के भूभाग में इतना  अन्य कहीं कर भार न था।।
टूट रही थी बिजली बिन बादल, जब यहाँ किसानों पर।
बरस रही थी आँखे जब, अपने स्वर्णिम अरमानों पर।
अंग्रेजी कुत्ते बेबस बेचारों, पर गुर्राते थे।
नंगे भूखे बच्चे घोड़ों के, रव पर थर्राते थे।।
सत्याग्रह तूफान लिए तब, लौह पुरुष पगधारा था।
बल्लभ भाई नाम था जिसका काल भी उससे हारा था।।

भारत को आजादी देकर गोरे चले गए लेकिन।
मीर मोहम्मद मनमोहन का रिश्ता तोड़ गए लेकिन।
गोरी चमड़ी वालों ने जब काला -काला विष बोया।
भारत माँ का हर सपूत, अपनी आँखे भर-भर रोया।।
गॉव गली की रेत से खूनी बारुदों का रिश्ता था।
हर निरीह हिन्दू या मुस्लिम जब दंगों मे पिसता था।।
तब सरदार पटेल वहाँ बन शान्ति दूत अवतारा था।
बल्लभ भाई नाम था जिसका काल भी उससे हारा था।।

सावन भादों की की अंधियारी, राते रोक नहीं पायीं।
रेगिस्तानी लू लपटें भी, उनको टोंक नहीं पायीं।
तोपों की आवाज से लड़ती, हिन्दुस्तानी चीखें थी।
दिल में थे राणा प्रताप, राणा प्रताप की सीखें थी।
धूल भरी आँधी का भी, था जिसने तब रुख मेड़ दिया।
जन-गण-मन के शब्दसार में, अधिनायक था जोड़ दिया।।
दीनों का जो दास दुखी, जनता का एक सहारा था।
बल्लभ भाई नाम था जिसका काल भी उससे हारा था।।

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