मंगलवार, 18 दिसंबर 2018

ग़ज़ल

तुम पर आँच न आए दुःख की अपने सारे ग़म पीते हैं
गर्मी  भर व्हिस्की पीते हैं फिर जाड़े भर रम पीते हैं।
जब से तुमसे नैन मिले हैं तबसे हालत सुधर गयी कुछ,
कभी कभी पीते हैं लेकिन अब पहले से कम पीते हैं।
तरह तरह से नाम बदलकर पीते रहते पीने वाले,
हम गंगा जल मान रहे हैं वे आबे जमजम पीते हैं।
दिल के हर कोने में मैंने इतने चित्र बनाए उनके,
याद बहुत जब आने लगती आँखों से अल्बम पीते हैं।
जो सागर पीकर बैठे हैं वे हैं इज़्ज़तदार शहर के,
चोर उचक्के वे कहलाते जो थोड़ी शबनम पीते हैं,
उनको सौंप दिया मयखाना जिनको इल्म नही पीने का,
प्याले धन्य हुआ करते हैं जिन प्यालों में हम पीते हैं।

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