रविवार, 31 मई 2020

जिसको गीत सुनाने

जिसको गीत सुनाने को मै,
रात रात भर भटक रहा हूँ,
पता नही किस राजभवन में 
सुख की नींद सो रही होगी,

हवा उधर से इधर आ रही और उधर भी जाती होगी,
मैने याद किया है जिसको याद उसे भी आती होगी,
जिसकी याद भुलाने खातिर,
हम मथुरा से गये द्वारिका,
पता नहीं किस वृन्दावन में,
वह उम्मीद बो रही होगी।

जाने किसके कुटिल अधर ने रंग अधर का लूटा होगा
कसमसाया होगा कितना पर कंगन अभी न टूटा होगा,
जिस पर रंग चढाने खातिर,
सब सांसें हो गयी होलिका,
पता नही किस आलिंगन में 
वह बकरीद हो रही होगी

जाने किसकी क्रूर उंगलियां खेल रही होंगी अलकों से,
जिन्हें संवारा करते थे हम अपनी इन भीगी पलकों से,
जिसको पास बुलाने खातिर
हम ही खुद से दूर हो गए,
पता नही किस आवाहन में,
सुनकर गीत रो रही होगी।
प्रियान्शु गजेन्द्र

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