रविवार, 31 मई 2020

जगमग दिन

जगमग दिन रोशन रहे रात,
घर उतरे तारों की बारात,
बस इतने तक तो रहा साथ आगे पथ एक नही तो क्या?
सारा जग साथ तुम्हारे है बस मैं ही एक नहीं तो क्या?

पर्वत निश्चल रह जाते हैं अक्सर नदियाँ बह जाती हैं,
फूलो का डाली से विछोह गुमसुम बगिया सह जाती है
क्या हुआ कलाई को उनकी कंगन स्वीकार नही मेरे,
क्या हुआ अगर अरमानों की चूड़ियाँ रखी रह जाती हैं?
अब तक तो सब स्वीकार किया,
इतने दिन तक तो प्यार दिया,
माटी तो चंदन हुई अगर होगा अभिषेक नही तो क्या ?
सारा जग .............................................?

इतने दिन प्यार दिया तुमने है बहुत बहुत आभार प्रिये,
मधुमासों को मिलना ही था यह पतझर का उपहार प्रिये,
नीरस पतझर के हाथों का जीवन भी एक खिलौना था,
दुख है इन घायल हाथों से मैं कर न सका शृंगार प्रिये,
नभ से तारे मैं ला सका,
इसलिए तुम्हें मैं पा न सका,
माथा तो लाए चौखट तक यदि पाए टेक नही तो क्या ?
सारा जग .............................................?

अपना सब कुछ देकर बैठे फिर भी तुमको हम पा न सके,
तुम गीत समय का थी तुमको नीरस अधरों पर ला न सके,
संसार भले कुछ भी समझे जो समझे उसे समझने दो,
जो तुम समझे वह था ही नही जो था वह हम समझा न सके।
जो था वह था अब जाने दो,
अब स्वर्णिम संध्या आने दो,
थकती आँखें बुझती आँखें पाई यदि देख नहीं तो क्या ?
सारा जग ..........….....................................?

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