पति धर्म से ऊपर
पतिव्रत से ऊँचा राष्ट्रधर्म,
नारी यह समझे गूढ़ मर्म,
वह भरत जननि वह वीर प्रिया
सब सोंच समझ कर रही कर्म
वह देव विजयिनी कैकेयी दुविधा मेअश्रु बहाए ,
निर्णय लेना है अभी राम राजा हों या वन जाए।
वन के तपसी उन ऋषियों के
तप व्रत भजनो का क्या होगा ?
सरवन की बूढ़ी माता के,
शापित वचनों का क्या होगा ?
क्या होंगे सपन जटायु के,
नारद के श्राप कहाँ होंगे,
दिन प्रतिदिन कटते जाते माँ
शबरी के पाप कहाँ होगे ?
क्या होगा भक्ति भावना का भगवान ना यदि जा पाए ,
निर्णय लेना है अभी राम राजा हो या वन जाए ।
गंगा तट पर केवट बैठा होगा
दर्शन अभिलाषा में,
राहें सुग्रीव देखता ही होगा,
प्रतिदिन इस आशा में,
संहार करेंगे रामचंद्र
इस नीच अधर्मी बाली का
रावण भी चाह रहा होगा
उद्धार करें प्रभु पापी का
उन सबकी चाह मरे मुझसे या फिर ममता मर जाए
निर्णय .......................... ........................।
जो धर्म एक क्षत्राणी का
वह धर्म निभाना ही होगा,
निशप्रानित मानवता,
अमृत घट से नहलाना ही होगा,
रघुकुल की लाज बचाने में,
राजन को सद्गति पाने दूँ,
चारों दिशि राष्ट्र सुरक्षा में,
रघुनन्दन को बन जाने दूँ।
बलिदान बिना कब होती हैं रक्षित भू की सीमाएँ,
निर्णय .......................... ........................।
सीमाओं पर पति और पुत्र,
कलियुग में कौन पठाएगा,
जब त्रेता सतयुग द्वापर,
कायरता की लीक बनाएगा,
दुनिया अनुसरण करेगी यह
रघुकुल कायर कहलाएगा,
पति और पुत्र का मोह,
राष्ट्र की रक्षा को खा जाएगा।
वरना क्या सीखेंगी हमसे,
कल आने वाली माँयें।
निर्णय .......................... ........................।
इतिहास कलंकित कर बैठी,
माटी में नाम मिला बैठी ,
पर देश भक्ति के वह
ऊँचे सिंहासन सीधे जा बैठी,
ऐसे वलिदान देश हित में
एक नारी ही दे सकती है,
नारी दुनिया की रचना से
ना रुकती है ना थकती है।
दुनिया को अमृत बाँट रही पीकर विष की कुण्ठाएँ,
निर्णय .....................................................।
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