गुरुवार, 17 दिसंबर 2020

सुबह छपे अखबार में

कहीं प्रशंसा कही से ताली
कहीं भरा दिल कहीं से ख़ाली 
मैंने इतनी उमर बिताली जैसे तैसे प्यार में।
रात रात भर तुमको गाया सुबह छपे अख़बार में।

पाँव बेचकर सफ़र ख़रीदा सफ़र बेचकर राहें,
जब खुद को मै बेंच चुका तो सबकी पड़ी निगाहें,
नींद बेचकर सपन ख़रीदे 
सपने बेच तबाही,
कागज बेंचे कलम ख़रीदी 
कलम बेचकर स्याही।
जीवन कई रंग में रंगा रंगों के व्यापार में,
रात रात भर तुमको गाया सुबह छपे अख़बार में।

कुछ गीतों से चित्र बनाए कुछ गीतों में रास रचा ली,
पनघट पनघट घूमे फिर भी अब तक अपनी प्यास बचा ली,
कुछ गीतों में हम खोए तो 
कुछ में दुनिया खोई,
कुछ गीतों में जब हम रोए ,
संग संग दुनिया रोई,
अब मुस्कानें बेच रहा हूँ आँसू के बाज़ार में,
रात रात भर तुमको गाया सुबह छपे अख़बार में।

तुम बोलो तुमने जीवन में क्या खोया क्या पाया ?
कौन पराया अपना हो गया अपना कौन पराया ?
कौन फ़ूल डाली से टूटा,
कौन खिला मधुवन में ?
किसके कंगन पहन के,
निकली हो पहले सावन में ?
किस ख़ुशबू से महक रही हो इस निष्ठुर संसार में ?
रात रात भर तुमको गाया सुबह छपे अख़बार में।

प्रियांशु गजेन्द्र

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