शनिवार, 30 जून 2018

जिसको गीत सुनाने खातिर

जिसको गीत सुनाने को मै,
रात रात भर भटक रहा हूँ,
पता नही किस राजभवन में
सुख की नींद सो रही होगी,

हवा उधर से इधर आ रही और उधर भी जाती होगी,
मैने याद किया है जिसको याद उसे भी आती होगी,
जिसकी याद भुलाने खातिर,
हम मथुरा से गये द्वारिका,
पता नहीं किस वृन्दावन में,
वह उम्मीद बो रही होगी।

जाने किसके कुटिल अधर ने रंग अधर का लूटा होगा
कसमसाया होगा कितना पर कंगन अभी न टूटा होगा,
जिस पर रंग चढाने खातिर,
सब सांसें हो गयी होलिका,
पता नही किस आलिंगन में
वह बकरीद हो रही होगी

जाने किसकी क्रूर उंगलियां खेल रही होंगी अलकों से,
जिन्हें संवारा करते थे हम अपनी इन भीगी पलकों से,
जिसको पास बुलाने खातिर
हम ही खुद से दूर हो गए,
पता नही किस आवाहन में,
सुनकर गीत रो रही होगी।
प्रियान्शु गजेन्द्र


3 टिप्‍पणियां:

  1. श्रीमान प्रियांशु जी, आपकी गीत प्रस्तुति YouTube पर देखी। वर्षो के पश्चात ऐसी सम्मोहित ,मंत्रमुग्ध कर देने वाली प्रस्तुति सुनी। आपकी विडियो को अनेक बार देखा। आप को सुनकर ऐसा संतोष हुआ कि गीत की विशुद्ध आत्मा जीवित हैं। ईश्वर से प्रार्थना हैं की आपकी लेखनी व वाणी मे ऐसे ही माँ सरस्वती का वास रहे ।
    शुभकामनाऐ

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  2. Gajendra bhaia apke geet Sun kar mujhe DEVAL ASHISH ji ki yaad aa jati h

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  3. प्रियांशु जी आप कतई जहर लिखते हो

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